शुक्रवार, 15 जून 2018

ग्रीष्म ऋतुचर्या


‌‌                                          ग्रीष्म ऋतुचर्या

सर्दी और गर्मी को मिलाने वाली तथा गर्मी का प्रारंभ करने वाली वसंत ऋतु समाप्त हो जाने पर जिन महीने में गर्मी अपने पूरे रूप में पड़ने लगती है उस ऋतु का नाम ग्रीष्म ऋतु है। इन दिनों सूर्य अपने अपनी पूरी शक्ति से संसार को तपाता है। सूर्य का ताप प्रकाश और प्राण ग्रीष्म ऋतु में अधिक से अधिक प्राप्त होता है। इसलिए सूर्य से मिलने वाले इन वस्तुओं का हमें इस ऋतु में अधिक से अधिक उपयोग करना चाहिए। सूर्य रश्मियों के सहारे से अपने मलों और विकारों को निकालकर निर्मलता और पवित्रता प्राप्त करनी चाहिए। यह काल आदान काल कहलाता है। साधारणतः समझा जाता है कि इस समय हमारा बल-शक्ति आदि क्षीण हो जाते हैं। परंतु यदि हम इस ऋतु का ठीक उपयोग करें तो इसके द्वारा हमारा कोई भी वास्तविक बल क्षीण न होगा, किंतु आदित्यदेव की पवित्रता कारक किरणों के उपयोग से केवल मल, दोष और विकार ही क्षीण होते हैं। सूर्य भगवान् हमारे शरीर में से केवल मलों और दोषों का आदान करके हमें पवित्र करते हैं।ग्रीष्म ऋतु के दो महीने जेष्ठ(शुचि) और आषाढ(शुक्र) है। इस ऋतु में सूर्य अपने प्रचण्ड रुप में होता है। अपनी किरणों से जगत के स्निग्ध और जलीय भाग को खींचकर प्रकृति में रुक्षता भर देता है। इस समय सूर्य बलवान तथा चन्द्रमा बलहीन होता है। इस ऋतु से आदानकाल का अन्त होता है यह ऋतु रुक्ष, पदार्थों में तीक्ष्णता उत्पन्न करने वाली  पित्तकारक तथा कफ नाशक है। इस ऋतु में वात संचित होता है। इस ऋतु में मनुष्यों की जठराग्नि तथा बल क्षीण अवस्था में होते हैं। इस ऋतु में शरीर से पसीना आदि निकलकर शरीर की शुद्धि होती है।

पथ्यापथ्य-

वसंत ऋतु में बढ़ा हुआ कफ ग्रीष्म ऋतु में शांत हो जाता है अतः इसलिए इस ऋतु में स्निग्ध, शीतवीर्य, मधुर तथा सुगमता से पचने वाले हल्के पदार्थों का सेवन करना चाहिए अर्थात गेहूं, मूंग, जौं, दलिया, जलालोडित सत्तू, लप्सी, श्रीखंड, दूध, घी, खीर, गुलकन्द, रसीले फल आदि का सेवन करना चाहिए।

आहार-विहार- 

पथ्य व पोषक आहार यदि शरीर को न मिले तो शरीर में तत्काल कोई तत्काल ही दिखता है, बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि निर्माण में समय लगता है और विनाश में कोई समय नहीं लगता वो तुरन्त ही ढेर हो जाता है। इस ऋतु में जहां जल तत्व की कमी हो जाती है वहीं जल तत्व प्रधान खाद्य वस्तुओं की प्रचुरता रहती है। इस ऋतु में जल व जल तत्व की प्रधानता वाले आहार का सेवन अधिक करना चाहिए।

ग्रीष्म ऋतु में मिलने वाले आहार-

नारियल, आम, संतरा, अनार, नींबू, फालसा, खरबूज, तरबूज, खीरा, ककड़ी, लॉकी, तोरई, कुष्मांड(पीला पेठा), परवल, चौलाई, हरा धनिया, पुदीना,  आदि अनेक जलीय खाद्य पदार्थों की बहुलता होती है। आम पन्ना का सेवन लू में बहुत ही कारगर होता है।

सावधानी-

इस ऋतु में लवण, अम्ल, कटु(चरपरे), तिक्त, कषाय द्रव्य, गर्म भोजन आदि के सेवन से बचना चहिए या कम से कम मात्रा में उपयोग करना चाहिए। खट्टे भोजन उष्णवीर्य व पित्तवर्धक होते हैं, इसलिए इसका सेवन कम ही करना चाहिए।

विहार-

शीतल व शुद्ध जल का सेवन, शीतल गृह में रहना, रात्री में चन्द्रमा की चांदनी, सुशीतल, प्रवात(जहां वायु का निर्बाध संचार हो) युक्त हर्म्यमस्तक(मकान की छत) पर सोना स्वास्थ्य के लिए हितकारी है। चन्दन का लेप, मोती, मणियों, पुष्पों का माला धारण करना, बाग-बगीचों की शीतल छाया में भ्रमण करना स्वास्थ्यकर होता है।

सावधानी- 

अधिक व्यायाम नहीं करना चाहिए। मैथुन से दूर रहना, धूप में अधिक देर तक रहना, खाली पेट(भूखे-प्यासे) धूप में जाना, धूप से आकर तुरन्त कोई भी पेय पदार्थं न लेना, पसीने में गीले होने पर किसी भी ठन्ढ़ी वस्तु का प्रयोग न करना, भूख सहन करना, मल-मूत्र के वेग को रोकना, क्रोध करना, शक्ति से अधिक कार्य करना, देर रात तक जागना आदि अपथ्य विहार का त्याग करना चाहिए।

पर्याप्त नींद न लेना-

इस ऋतु में रात्री छोटी होती है| गर्मी के कारण देर से सोने पर नींद पूरी न होने के कारण, पर्याप्त नींद नहीं ले पाते तथा सुबह देर तक सोते हैं। देर से सोने व नींद पूरी न होने से शरीर में उष्णता बढ़ती है जिससे मल सूखता है। आँखें नीरस, चेहरा तेजहीन होता है शरीर में सुस्ती तथा आलस्य बना रहता है।

प्रातःकाल की शुद्ध हवा सब रोगों की एक दवा-

प्रातःकाल मल विसर्जन का समय होता है, वायु मल विसर्जन के लिए प्रेरित करती है, पर हम उस समय विस्तर में पड़े रहते हैं। प्रातःकाल की वायु सेवन से शरीर में चैतन्यता व स्फूर्ति प्राप्त होती है। मन शान्त तथा प्रसन्न होता है। फेफडों को जो ऑक्सीजन(प्राणवायु) प्रातःकाल प्राप्त होती है वो दिन के किसी अन्य समय वो प्राणवायु नहीं मिल पाती है। इस जीवनदायी प्राणवायु को छोड़ विस्तर में पड़े-पड़े जीवन नाशक कार्बन डाईऑक्साइड को लेते रहते हैं।

ग्रीष्म ऋतु में होने वाले रोग-

शरीर में रुक्षता व जल के कमी के कारण अधिक प्यास लगना, आलस्य, अनुत्साह, ग्लानि, थकान, उल्टी-दस्त (Vomiting-Diarrhea), लू लगना(Sunburn), सिरदर्द(Hadeca), खुजली, फोड़े-फुन्सी, नक्सीर, आदि।

वस्त्र-

ग्रीष्म ऋतु में हल्के रंग के तथा सूती वस्त्र पहनना स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है।


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