"पहला सुख निरोगी काया" स्वास्थ, संस्कार, चिकित्सा, सामाजिक, पारिवारिक, आध्यात्मिक लेखों को पढ़े तथा ज्ञान वर्धन कर जीवन को उन्नत बनायें, धन्यवाद।
बुधवार, 27 दिसंबर 2017
शुक्रवार, 8 दिसंबर 2017
स्वास्थ्य की चाहत
स्वास्थ्य की चाहत
हर मनुष्य चाहते हैं कि हम स्वस्थ रहें और चाहना भी चाहिए। पर हम रह नहीं पाते हैं कारण, आयुर्वेद तथा अन्य शास्त्रों में इसका मूल कारण प्रज्ञापराध यानि बुद्धि का अपराध बताया है। प्रज्ञापराध का मतलब ईर्ष्या, द्वेष, लोभ, लालच, क्रोध, स्वार्थ आदि के कारण न चाहते हुए किसी कार्य को करना। इस मानसिक विकृति के कारण हम अपने साथ दूसरों का भी नुकसान करते हैं। जिसे लोक में पाप के नाम से जाना जाता है और कहा जाता हैं कि अमुक व्यक्ति ने बहुत पुण्य किया है या किया होगा के तो सब अच्छे हैं, सब उसके अनुकूल है। अमुक व्यक्ति ने बहुत पाप किया है दूसरों को सताता है सताया है आज वो अपनी करनी को भर रहा है 'जैसी करनी वैसी भरनी'। तो प्रश्न उठता है कि हम ऐसा क्या करें जिससे हमारा तन-मन भी स्वस्थ रहे और हमारे सगे-सम्बंधी भी हमारे अनुकूल हो।
स्वास्थ उपाय-
स्वास्थ उपाय-
इसके तीन उपाय हैं ज्ञान, कर्म और उपासना। इसके अलावा चौथा कोई उपाय नहीं हैं। "ज्ञान" अर्थात् जो चाहिए उसके विषय में जानना, "कर्म" अर्थात् जानने के बाद उस कर्म को करना, अपनाना, "उपासना' अर्थात् जो हमें चाहिए तथा वो चीज जिसके पास है उससे पाने के लिए उसे दूंढना। उस मनोकामना की पूर्ति हेतु सामर्थ्य वान को ढूंढ़ना और उससे प्रार्थना करना। वो सामर्थ्यवान है ईश्वर दूजा न कोय। वेद व वैदिक शास्त्रों में प्रभु प्रार्थना के अनेक मन्त्र वर्णित जिसमें एक मन्त्र बहुत ही प्रचलित है। वेद ज्ञान को पुनः स्थापित करने वाले, नारी शिक्षा का अधिकार दिलाने वाले, विधवाओं की करुण व्यथा को मिटाने वाले, दलितों को गले लगाने वाले महर्षि देव दयानंद जी ने अपने भक्तों के आग्रह पर सुखी रहने व कुबुद्धि को सुबद्धि में बदलने के लिए सबको एक साथ वो मन्त्र बताया जिसे गुरु मन्त्र के नाम से जाना जाता है। उसे जपने से हमारी बुद्धि कभी कुमार्ग पर नहीं जा सकती है वो मन्त्र है -
ओ३म् भूर्भुव: स्व:। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यधीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।। (यजु० 36/31)
भावार्थ- हे परमेश्वर! आप हमारे प्रियतम प्राण हैं। हमें अशुभ संकल्पों तथा भौतिक विपत्तियों से दूर रखें। हम आपके शुद्ध प्रकाशमय स्वरुप का दर्शन अपने अन्त:करण में नित्य करें। हे प्रकाशक! हमे प्रकाश की ओर ले चलो। आपका प्रकाशमय स्वरूप हमारी बुद्धियों को सन्मार्ग में प्रवृत करे। हम न केवल अभ्युदय (उत्तरोत्तर उन्नति करें) बल्कि नि:श्रेयस भी प्राप्त करें।
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