"पहला सुख निरोगी काया" स्वास्थ, संस्कार, चिकित्सा, सामाजिक, पारिवारिक, आध्यात्मिक लेखों को पढ़े तथा ज्ञान वर्धन कर जीवन को उन्नत बनायें, धन्यवाद।
मंगलवार, 19 मई 2020
रविवार, 10 मई 2020
मातृ दिवस
💥।।ओ३म्।।💥
मातृ दिवस की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं
मां शब्द नहीं जीवन है,
जीवन की धूप छांव है,
घुटने पर चलती देख सन्तान को,
हंस्ती-मुस्कुराती है मां,
फूले नहीं समाती है मां,
खेल खेल में पैरों पर,
खड़ा कर देती है मां,
ममता की रक्षा में,
काला टीका लगाती है मां,
कभी डांटती कभी मनाती हैं मां,
हो जाय सन्तान कितना भी बड़ा,
रहता वो सदा चांद का टुकड़ा,
व आंखों का तारा वह,
मां का रखें ध्यान,
कभी न करें अपमान,
मां शब्द नहीं जीवन है,
जीवन की धूप छांव है।
वैदिक संस्कृति में माता का स्थान सर्वोपरि है। वेदों में मां को अनेक नामों से जाना जाता है। मां के विषय में वेदोंक्त वाक्य इस प्रकार है-
"माता निर्माता भवति" - माता संतानों का निर्माण करने वाली है। माता को प्रथम शिक्षक बताया गया है। गर्भावस्था से लेकर 5-6 वर्ष अपनी भूमिका निभाती है तथा समाज में प्रवेश कराती है अर्थात् समाज के प्रथम सोपान पर सफलतापूर्वक सदाचार सुसज्जित कर चढ़ाने का दायित्व मां पर है। संस्कार का बीजारोपण व विकसित इसी समय किया जाता है जो जीवन पर्यन्त दृढ़ रहता है। बीज के आधार पर ही वृक्ष और फल की गुणवत्ता का अनुमान लगाया जाता है।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।' अर्थात, जननी और जन्मभूमि को स्वर्ग से भी महान कहा है।
"मातृ देवो भव:" - अर्थात् मां का स्थान देवों से भी ऊंचा माना है।
"मातृमान् पितृमानाचार्यवान पुरूषो वेदः"(शतपथ ब्राह्मण)- अर्थात् तीन उत्तम शिक्षकों में प्रथम शिक्षक मां है।
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