बुधवार, 23 जून 2021

"सुई-धागा का संगम"

🔥।।ओ३म्।।🔥
किसी की बात को कोई मान लेता है,
तो उसे झुकना कहते हैं लोग,
इसको झुकना नहीं सामंजस्य कहते हैं,
सामंजस्य से गति मिलती है,
एक सूत अकेला कुछ नहीं कर सकता,
कुछ करने के लिए एक-दूसरे का,
सहयोगी बनना पड़ेगा,
वरना पड़े-पड़े सड़कर नष्ट हो जायेगा,
यह धागा संगठित है इसीलिए दूसरे को जोड़ता है,
और जोड़ने के लिए भी सूई को,
सहयोगी बनाता है,
सभी का अपना अस्तित्व है,
किसी के अस्तित्व पर आघात करना अच्छा नहीं,

महत्त्वपूर्ण बनें बनायें जीवन में शान्ति लायें।




मंगलवार, 15 जून 2021

वेद क्या है

                                   

   

                                     द क्या है



 

 वेद परमात्मा द्वारा प्रदत्त दिव्य ज्ञान है। वेद हमारी संस्कृति के मूल आधार हैं। वेद ज्ञान-विज्ञान के अनुपम को हैं विविध विद्याओं का आधार है। वेद की शिक्षाएं, संदेश,  उपदेश और आदेश मानव जीवन को उन्नत बनाने वाले हैं।  वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना आर्य समाज के संस्थापक- 


“महर्षि दयानंद सरस्वती” ने धर्म नहीं परम धर्म बतलाया है।  धर्म का अर्थ होता है सुखकारी वस्तुओं व बातों को धारण करना। जो धर्म का पालन करता है वह श्रेष्ठ मानव कहलाता है। श्रेष्ठ मानव को वेद में आर्य कहा गया हैं।

वेद मानव जीवन के संचालन की वह सूची है जिसके अन्दर सुख-शान्ति को प्राप्त करने का साधन है। सूत्र है उस सूत्र के अनुसार चलने से सुख ही सुख प्राप्त होता है। यह मानव जीवन की यात्रा को सुख और आनन्द पूर्वक पूर्ण करने का मार्ग है। इसको समझने के लिए दो ाहरण लेते हैं-

 

1. पहला उदाहरण है  “यात्रा”-


जैसे हमें कहीं जाना होता है तो हम उस स्थान पर जाने से पहले उस स्थान की पूरी जानकारी प्राप्त करते हैं कि वह पर्वतीय (पहाड़ी) है या पठारी (मैदानी), शहर है या गांव। उस स्थान के वातावरण आदि के अनुकूल हम वहां पहुंचने की व्यवस्था करते हैं जिससे कि हमें किसी प्रकार का कष्ट न हो, हर कष्ट से बचने का हर सम्भव प्रयास करतें हैं। पर वहां पहुंचने की तैयारी उस आधार पर करते हैं, जो हमसे पहले उस स्थान पर जा चुका है, भ्रमण कर चुका होता है। स्थान विशेष का भ्रमण किया हुआ व्यक्ति लौटकर उसका गुणगान, कथन हमारे सामने किया या करता है तब हम केवल शब्द प्रमाण के आधार पर हम उस स्थान की मानसिक कल्पना कर वहां जाने की तैयारी करते हैं तथा अपनी योजनानुसार  पूर्व तैयारी के आधार पर हम अमुक स्थान पर भ्रमण आदि का आनन्द लेते हैं, ले पाते हैं। यदि योजनाबद्ध तैयारी न करें तो क्या हम आनन्द ले पायेंगे नहीं कभी नहीं।

2.    दूसरा उदाहरण है  वस्तु का-


जब हम बाजार से अपने उपयोग की कोई भी वस्तु लेने व खरीदने का विचार बनाते हैं तो अपने मित्रों व सगे-संबंधियों आदि से विचार करते हैं कि कौन सा लें, जांच-पड़ताल करते हैं और हम उस वस्तु को लेने का निर्णय लेते हैं हम उसी वस्तु को पसंद करते हैं जो अन्य लोगों ने उसका प्रयोग पहले किया हुआ होता है। जिसका परिणाम (Result) पता होता है। लेकिन जब हम दुकानदार के पास जाते हैं तब वह उसी वस्तु के अनेको रुप और रंग दिखाता है। और हम अपनी पसंद से वस्तु का (चयन) करते हैं, ब दूकानदार उस वस्तु के साथ उसको संचालित करने के लिए विवर्णिका अर्थात् “निर्देश-पुस्तिका” देता है जिसमें उस वस्तु को चलाने की पूर्ण विधि लिखी होती है कि कैसे चलाना है। उसकी रख-रखाव कैसे करनी है। उसके पार्ट-पुर्जे का जीवन (लाइफ)  कितना है। उसकी सर्विस कितने दिनों में होगी, कहां होगी,  कितने व्यय (खर्च) होगें आदि-आदि बातों की जानकारी लेकर ही हम उसका क्रय(खरीदते) करते हैं तथा उसका प्रयोग आरम्भ करते हैं

मानव द्वारा निर्मित छोटी सी वस्तु के विषय में हम इतना विचार करते हैं कि किसी प्रकार का कष्ट हो पर क्या हमनें यह विचार किया कि हमारे जीवन में कठिनाई हो नहीं, हमें कोई भी कुछ भी सुनाकर हमारे जीवन की पटरी को किसी भी ओर मोड़ देता है क्यों? आइये जानने का प्रयास करते हैं।

जिस प्रकार मानव अपने द्वारा बनायी हुई वस्तु का प्रयोग विधि का विवरणिका (prospectus) देता है। उसी प्रकार ईश्वर ने मानव जीवन को संचालित करने के लिए मानव सृष्टि से पूर्व मानवोपयोगी संसाधनों का निर्माण कर उसकी प्रयोग विधि का विवर्णिका बनाया जिसका नाम है “वेद वेद का अर्थ होता है ज्ञान। ज्ञान का अर्थ होता है जानना। ज्ञान दो प्रकार का होता है- स्वभाविक और नैमित्तिक। स्वभाविक ज्ञान के लिए हमें प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं होती है। स्वाभाविक ज्ञान ईश्वर ने सृष्टि के सभी प्राणियों को एक समान दिया हुआ है। लेकिन एक प्राणी को नैमित्तिक ज्ञान भी दिया जिसे अपनाकर वह जीवन-मरण के चक्र से अथवा दु:ख छूट से सकता है उसका नाम है मानव। मनन करने से ही मानव या मनुष्य है अन्यथा वो भी अन्य प्राणियों की तरह एक प्राणी। ईश्वर द्वारा दिये हुये ज्ञान को जबतक मानव समझेगा नहीं, अपनायेगा नहीं तबतक दु:खों के जाल से नहीं निकल सकता। ईश्वर ने मानव को दु:ख सागर से निकालने के लिए वेद की रचना की तथा उस ज्ञान को चार भागों में विभक्त किया जिसको ज्ञान, कर्म, उपासना  और विज्ञान कहते हैं। जब तक ज्ञान, कर्म और उपासना का संगम नहीं होगा तबतक कल्याणकारी विचारों की उत्पत्ति नहीं हो सकती।

इन चारों वेदों का नाम है- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। ऋग्वेद के अन्दर सृष्टि के सम्पूर्ण ज्ञान का वर्णन है, यजुर्वेद में कर्म का वर्णन है कि ज्ञान को प्राप्त करके कर्म कैसे करें, सामवेद उपासना का विषय है कि हम उपासना व प्रार्थना किसकी कब और कैसे करें, अब चौथा अथर्ववेद वेद है। इसमें तीनों वेद अर्थात् ज्ञान, कर्म और उपासना के आधार पर विशिष्ट ज्ञान की उत्पत्ति कैसे होगी अर्थात् विज्ञान प्राप्ति के उपायों का वर्णन है।

ईश्वर ने उत्पाद(Product) तथा उत्पाद की प्रयोग विधि आदि सब तैयार कर दिये अब समस्या आयी की उपयोग कर्त्ता तक यह उत्पाद पहुंचे कैसे? उत्पाद को उपभोक्ता तक पहुंचाने के लिए कोई होना चाहिए। तब ईश्वर ने चारो उत्पादों (विषय) को उपभोक्ता तक पहुंचाने के लिए चार जीव का चयन अर्थात् चुनाव (select) किया तथा सम्पूर्ण ज्ञान को उनके हृदय में उतारा जिनका नाम था 


अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा। ईश्वर ने इनके द्वारा समस्त मानव तक इसे पहुंचाया

पहुंचाया कैसे? पहुंचाने का माध्यम है “श्रुति” 


श्रुति अर्थात् सुनने-सुनाने की विधि। श्रुति विधि के द्वारा मानवोपयोगी ज्ञान को समस्त मानव तक पहुचाया। जिसके आधार पर मानव आज तक अपना जीवन यापन कर रहा है लेकिन अभिज्ञय की भांति जिसके कारण दु: सागर में गोते लगा रहा है।

आज इस ज्ञान को जानने-सुनने में लोगों को अरुचि हो गयी है क्योंकि लोग स्वार्थी लोगों के चंगुल में फंसकर अपनी बुद्धि को गिरवी रख कर ढोंगी, कपटी, व्यभिचारी लोगों के हाथ में अपनी मुक्ति की डोरी सौंप दिया है। थोड़ा विचार करिये कि जो अपने जीवन की नैया कीचड़ में फंसा रखा है वह आपकी नैया कैसे पार लगा सकता है।  सुख के लिए अन्यत्र भटकते हैं, भटक रहे हैं। जिसके कारण मानव घोर कष्ट को भोग रहा है।

भारत के जितने भी ऋषि, महर्षि, महापुरुष हुये हैं उन सभी ने वेदों को धारण किया तथा अपने अनुभवों को जन समुदाय में बांटा और उस पथ पर चलने के लिए प्रेरित किया। लेकिन दुर्भाग्य है किम उनके कथनों की अवहेलना कर दु:ख सागर में डुबे हुये हैं। यदि हम दु:ख से छूटना चाहते हैं तो वेद के माध्यम से सुख-दु:ख क्या है उसके विषय में जाने और उससे छूटने का प्रयत्न करें, करना पड़ेगा दूसरा कोई मार्ग नहीं जो सुख-शान्ति दिला सके।

                      "करें प्रयोग रहें निरोग"

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