बेटी ही तो बहु बनती है-
बेटी ही तो बहु बनती है,
मां-बाप को अपना समझती है,
सास-ससुर को बेगाना क्यों,
बड़े उत्साह व सम्मान से,
बहु बनाकर लाये थे,
जीवन का हर श्रृंगार,
मिला सास-ससुर से,
पर हम कृतघ्न क्यों बन गये,
बुढ़ापे में सहारा बनना था,
पर अकेला छोड़ गये,
क्या माता-पिता का दोष नहीं,
कलतक जिस हर घर में,
खुशहाली थी आज,
मातम का माहौल है,
करता माता-पिता का दोष नहीं,
पालन-पोषण करे,
लाड-प्यार से,
कर्त्तव्य बोध कराना न भूले,
माता-पिता प्रथम गुरु हैं,
जीवन के सोपान का,
यदि हम चुक गये,
तो जीवन अर्थहीन हो जायेगा,
अपना कर्तव्य निभाने,
जीवन खुशहाल बनाये,
बेटी को बहु का,
कर्त्तव्य बतायें,
दोनों कुलों का गौरव बढ़ायें,
नारी स्वस्थ,
समाज का आधार है,
आधार को मजबूत करना,
हमारा धर्म। "धर्मों रक्षति रक्षत:"
।।ओ३म।।
~~वैद्य. सुनीता अग्रवाल~~