बुधवार, 27 दिसंबर 2017

स्वास्थ्य की परिभाषा

हम स्वस्थ हैं या नहीं कैसे जानें?



अपने स्वास्थ्य के लिए तरह-तरह के परीक्षण करवाते हैं तो हमें अपनी बीमारी का पता चलता है न ही बीमारी से मुक्ति मिलती है| समय बताने के साथ-साथ नई-नई और अच्छी लगती हैं| इन सभी अध्ययनों से मुक्ति पाने के लिए और अपने स्वास्थ्य   परीक्षण के लिए हमें क्या करना चाहिए |  इसके लिए मैं अपनी ओर से नहीं बल्कि वेद और ऋषियों की बातें आपके सामने रखता हूं आचार्य सुश्रुत जी ने बहुत ही सरल सूत्र दिया है कि हम स्वस्थ हैं या फिर शस्त्र से चिकित्सा जगत में शल्य चिकित्सा करते हैं।

हम स्वस्थ हैं या नहीं कैसे जानें? अपने स्वास्थ्य की जांच के लिए डॉक्टर, डॉक्टर के पास जाना जरूरी है? आज हमें अपने स्वास्थ्य को लेकर न जाने कितने परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है फिर भी हमें कुछ नहीं पता कि स्वास्थ्य किसे कहते हैं? हम स्वस्थ कैसे रह सकते हैं?

समदोष: समग्निश्च समधातुमलक्रिय:। आकर्षकात्मेन्द्रियमना: स्वस्थ इत्यभिधीयते॥

इस श्लोक में आचार्य ने बताया कि हमारे शरीर संचालन के तीन साधन हैं- दोष, अग्नि और धातु। दोष (वात, पित्त, कफ), अग्नि (जठराग्नि से भोजन का पाचन होता है) तीसरा धातु है (यह शरीर धारण करता है) अर्थात शरीर स्थिर रहता है|

दो - वात, पित्त, कफ जब ये अपनी प्राकृत अवस्था में होते हैं तब प्रकृति तथा विषम अवस्था में होते हैं तो दोष कहलाते हैं। वात(वायु) का कार्य होता है जाना। पित्त (अग्नि) का कार्य होता है जलाना या भस्म करना, पित्त से ही हमारे द्वारा खाए गए भोजन का पाचन होता है| श्लेष्मा(कफ) का कार्य स्थिर करना| जैसे प्रकृति में तीन गुण हैं सत्त्व, रज, तम, वैसे ही शरीर में वात, पित्त और कफ हैं।

अग्नि-  अग्नि का मतलब पित्त से होता है। जब पित्त का निर्माण अपनी मात्रा में होता है तो जठराग्नि ठीक होती है और भोजन का पाचन ठीक होता है| जब पित्त की अधिकता और कमी होने पर जलन, अम्लपित्त (एसिडिटी), अरुचि, भूख की कमी आदि लक्षण दिखाई देते हैं जो आगे चलकर शरीर में कई रोगों का घर बन जाता है।

धातु- रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र| इसे सप्तधातु भी कहा जाता है| इसका निर्माण और समष्टि (प्राकृतिक अवस्था) में बने रहना का आधार है भोजन का पाचन, दोष, और अग्नि का अपनी प्राकृत अवस्था में रहना।| इनका निर्माण क्रम होता है| 

मलक्रियाः-  मलक्रियाः का मतलब शरीर में निर्मित मल, मूत्र, स्वेद आदि का निष्कासन तथा सोना, जगना आदि का होना है। मल निष्कासन की क्रिया संभावित रूप से  ठीक हो जाती है| क्रियाएँ ठीक रहती हैं तो आत्मा, इन्द्रिय और मन तीनों प्रसन्न रहती हैं।

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