शुक्रवार, 27 मार्च 2020

“वेदवाणी मासिक पत्रिका”


“वेदवाणी मासिक पत्रिका”

‘वेदवाणी’ अर्थात् वेद का वचन, कथन। वेद = ज्ञान। वाणी = वचन। वेद अर्थात् ज्ञान की चार पुस्तक  (ग्रन्थ) है जिसे ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद अथर्ववेद कहा जाता है। वेद मानव जीवन का सूचीपत्र (Catalogs) है। इसमें मानव के उत्थान-पतन का समस्त ज्ञान-विज्ञान है। वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है। इसका पढ़ना-पढ़ाना, सुनना-सुनाना मानव का परम धर्म है। परम = उत्कृष्ट, मुख्य, प्रधान, पूर्णरूप से। धर्म = धारण करने योग्य, अपनाने योग्य।



अर्थात् वेद का पढ़ना-पढ़ाना, सुनना-सुनाना सभी कर्मों में प्रधान कर्म है। इसे छोड़कर, इसकी अवहेलना कर मानव ने अपने जीवन को नारकीय बना डाला है। बिना इसके पढ़े सुने व इसकी बातों को धारण किये सुखमय जीवन जीना तो दूर इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। वेदवाणी (ईश्वरीय ज्ञान) को स्वाध्यायशीय विद्वानों, सज्जनों के लेखनी द्वारा शोधपूर्ण वैदिक प्रमाणयुक्त लेख (विचार) को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य ‘वेदवाणी’ मासिक पत्रिका के माध्यम से निरन्तर हो रहा है।इसमें चारों आश्रमों ब्रहचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ व सन्यास सभी के जीवन निर्माण तथा ईश्वर, जीव, प्रकृति की सत्ता का ज्ञान वर्धक लेख प्रकाशित होते हैं। इस पत्रिका द्वारा ‘चिकित्सा विज्ञान’ पर लेखमाला का आरम्भ (अप्रैल 2019 से) किया गया है जो मेडिकल के छात्रों चिकित्सकों के लिए बहुत ही उपयोगी है। जो छात्र व चिकित्सक अपने चिकित्सा-व्यवसाय को सफल बनाना चाहते हैं, कुशल व यशस्वी चिकित्सक बनना चाहते हैं तो ‘वेदवाणी’ के सदस्य बनकर इस लेखमाला के माध्यम से भारतीय चिकित्सा की वैज्ञानिकता को जानें। आधुनिक और प्राचीन चिकित्सा के तुलनात्म अध्ययन से इसकी समृद्धि को जानें और समझें।लेखमाला शीर्षक है- “सुश्रुत संहिता का स्वाध्याय”। अबतक सुश्रुत संहिता ‘सूत्रस्थान’ से बारह अध्याय प्रकाशित हो चुके है। सूत्रस्थान अर्थात् चिकित्सा फॉर्मूला, चिकित्सा का आधार, चिकित्सा करने के विधि का विस्तृत वर्णन है जो बहुत ज्ञान वर्धक और रोचकतापूर्ण है। आगे आने वाले अध्यायों के माध्यम से अत्यधिक रोचक जानकारी मिलने वाली है।इस पत्रिका का प्रकाशन (सन् 1948) से प्रारम्भ होकर आज निर्बाध रूप से 72 वर्ष में पहुंच गया है। इसके प्रथम सम्पादक श्री ब्रह्मदत जिज्ञासु जी, द्वितीय सम्पादक पंडित युधिष्ठिर मीमांसक जी, तृतीय सम्पादक पंडित विजयपाल विद्यावारिधि जी रहे तथा वर्तमान इसके सम्पादक आचार्य प्रदीप कुमार जी तथा सहसम्पादक ब्रह्मचारी राम आर्य जी हैं।ज्ञान के बिना जीवन का उत्थान नहीं। अपने व अपने जनों के जीवन-उत्थान हेतु इस पत्रिका के सदस्य बनें-बनायें, इसे पढ़ें-पढ़ायें, जीवन में प्रसन्न्ता बढ़ायें।


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