रजोप्रवृति व रजोनिवृत्ति का दाम्पत्य जीवन पर प्रभाव (impacts of Menopouse on married life)
रजोप्रवृति व रजोनिवृत्ति का दाम्पत्य जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? उससे पहले यह होता क्या है इस पर विचार करते हैं। महिला के जीवन में
रजोप्रवृत्तिकाल (Menarchae) एवं रजोनिवृत्तिकाल (Menopouse) शारीरिक व
मानसिक परिवर्तन का सूचक होते हैं। रजोप्रवृत्ति 12 से 15 वर्ष की आयु में
प्रारम्भ हो जाता है तथा 45-50 वर्ष तक रहता है। प्रात्येक चक्र 28 दिन का होता है
और इसे मासिकधर्म, माहवारी व रजोदर्शन आदि के नाम से जाना जाता है। यह गर्भावस्था
तथा प्रसव होने के कुछ समय बाद तक बन्द रहता है। मासिक का आरम्भ तथा मासिकधर्म का अन्त
इन के बीच के समय को रजःकाल कहा जाता है। या युवावस्था से प्रौढ़ावस्था के
काल को रजःकाल कहा जा सकता है।
रजोप्रवृति का मतलब युवावस्था में
प्रवेश करना तथा रजोनिवृति का मतलब वृद्धावस्था में प्रवेश करना। रजोप्रावृति काल में युवावस्था के लक्षण प्रकट होते हैं। रजोप्रवृति काल
में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होता है तथा सन्तान उत्पत्ति की क्षमता प्राप्त होती है। जीवन में उमंग, तरंग व उत्साह हिलोरे लेने लगते हैं। मन में नये-नये सपने सजने लगते हैं। तथा गृहस्थ जीवन में जाने की तैयारी शुरु
हो जाती है। इस समय तन-मन में शक्ति का संचार होता है।
रजोनिवृति काल मासिक धर्म का अन्तकाल होता है। इस काल को अंग्रेजी में Menopouse और Change of Life कह्ते हैं। इस काल में महिला गर्भधारण व सन्तान उत्पन्न करने में असमर्थ होती हैं। रजोनिवृत्ति काल में शरीर में कुछ परिवर्तन होने के कारण कुछ कष्ट व परेशानी होने लगती है जिससे महिलाएं अपने आपको रुग्ण(बिमार) समझने लगती हैं। इस कारण इसे बिमारी के रूप में जाना जाने लगा। रजोनिवृत्ति काल में माहवारी अनियमित हो जाती है यानि २-३-४ महीने के अन्तराल पर आना। मासिकधर्म अनियमित होकर सम्पूर्ण जीवन के लिए बन्द हो जाता है।
रजोनिवृत्ति काल(Menopause) के
लक्षण(symptoms)-
इस
समय कुछ परेशानियों के साथ धीरे-धीरे मासिक धर्म कम होकर बन्द हो जाता है। तथा अनेक
लक्षण प्रकट होते हैं जैसे- चेहरा लाल होना, सिरदर्द(Headache) होना, चक्कर आना, पसीना
आना(Sweating), दिल की धड़कन तेज होना(increases Heart Beat), रक्तचाप का बढ़ना(High blood pressure), बेचैनी व घबराहट होना,
स्वभाव चिड़चिड़ा होना(Short tempered), उदासीन होना(किसी कार्य में मन का न लगना), कमजोरी का अनुभव होना(Weakness),
पाचन व उदर सम्बंधित विकार होना(), जी मिचलाना(Nausea), वमन होना(Vomating), कमर, गर्दन व जोड़ों में दर्द(Joints pain) होना, हांथ-पांव का सुन्न होना, बिना इच्छा मूत्र का निकल जाना, रसौली आदि का होना,
आदि लक्षण दिखते हैं।
इस्ट्रोजन हार्मोन की कमी के कारण नाड़ीतंत्र
विक्षोभित होता है जिसके कारण कुछ स्त्रियों में चेहरे पर १-२ मिनट के लिए की
गर्मी के दौरे(Hot Fluhes) होते हैं या दिन, महीने वा रजोनिवृति काल तक
हो सकते हैं। इसके बाद पसीना आने के दौरे भी हो सकते हैं। साथ ही साथ हृदय की धड़कन
बढ़ना, सांस लेने में कठिनाई, चक्कर की भी अनुभूति हो सकती है। इन सब लक्षणों से
महिलाएं घबराने लगती है व डर जाती हैं कि न जाने कौन सी बीमारी हो गयी। कभी-कभी भय
व चिन्ता के कारण अवसाद(Dipression) तथा अनिद्रा(Insomnia) से भी ग्रस्त हो जाती हैं।
मानसिक तनाव(mental stress)-
इस
काल में कुछ महिलाएं मनःस्थिति ठीक नहीं रहती क्योंकि वो शरीर की प्राकृतिक अवस्था
को स्वीकार नहीं कर पातीं की मैं युवावस्था को छोड़ वृद्धा अवस्था में प्रवेश कर चुकी
हूँ। कुछ वृद्धावस्था के नाम से ही चिड़ती हैं क्योंकि उनमें हमेशा जवान बने रहने की
प्रबल इच्छा रहती है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है वैसे-वैसे अपने आप को जवान बनायें रखने
की पूरी कोशिश करती है। वृद्धावस्था का एह्सास इनके दिलो-दिमाग में खलबली मचा देता
है जिसके कारण अपना मानसिक संतुलन खो देती हैं।ऐसा
उन महिलाओं में होता है जो अपने आपको आधुनिक व पढ़ी-लिखी समझती हैं। ऐसा उन महिलाओं
में होता है जिनका जीवन आधुनिक संसाधनों से युक्त आरामदायक होता है। किन्तु इसके विपरीत
साधारण सामाज व परिवार की स्त्रियों पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है। क्योंकि वे जीवन
के हर परिवर्तन को सहज और स्वभाविक रूप से स्वीकार करते हुये प्रसन्न्ता पूर्वक जीवन
जीती हैं।
अन्तःस्रावी ग्रथियों से हर्मोन
का स्राव कम होना-
रजोनिवृत्ति
की क्रिया अंडाशय की निष्फलता के फलस्वरूप शरीर में इस्ट्रोजन हार्मोन के अभाव के कारण
होती है। प्रजनन अंगों में धीरे-धीरे शुष्कता आने लगती है। गर्भाशय एवं अण्डाशय सिकुड़कर
छोटे हो जाते हैं। योनि की झिल्ली पतली हो जाती है। जिसके कारण इस समय योनि में संक्रमण,
सूजन आदि अनेक बीमारी आने लगती है। गर्भाशय ढ़ीली होने के कारण योनि से बाहर आने का
खतरा होता है, इस समय विशेष सावधानी रखनी चाहिए। इस समय का रोग कमर दर्द, पीठदर्द,
संधिशूल, मोटापा, स्तनों का अपुष्ट होना व लटकना आदि है। इस काल में रक्त में वसा की
मात्रा बढ़ने से की संभावना होने से धमनी काठिन्य(कठोर) हो जाता है जिसके कारण उच्च रक्तचाप
की अधिक संभावना रहती है। पाचन तंत्र शिथिल होने से कारण अपच, कब्ज, गैस आदि की भी
समस्या रहती है।
इस
समय शारीरिक लक्षणों के साथ-साथ स्त्रियों में मानसिक उद्विग्नता व बेचैनी भी देखी
जाती है इसका कारण है शारीरिक सौंदर्य व स्त्रीत्व समाप्त होने का डर। उसे डर सताने
लगता है कि वह पति के लिए यौन आकर्षण का केन्द्र नहीं रहेगी।
रजोनिवृत्ति
के कारण महिलाओं में शारीरिक व मानसिक के साथ-साथ दाम्पत्य जीवन पर भी गहरा असर पड़ता
है। रजोप्रवृति से युवावस्था का आरम्भ तथा रजोनिवृत्ति से वृद्धावस्था का आरम्भ होता
है। इसी प्रकार पुरुष में पुरुष चिह्न के विषय में भी है। युवावस्था में युवक-युवती
दोनों एक-दूसरे के सहयोगी बनकर गृहस्थ जीवन का आरम्भ करते हैं। जिसका मुख्य उद्देश्य
यौन सुख तथा सन्तान सुख की प्राप्ति है, समाज में अपने प्रतिनिधि तैयार करना है जो
५०-६० वर्ष की अवस्था तक गृहस्थ की सारी जिम्मेदारी पूरी हो जाती है। बच्चे अपनी जिम्मेदारियों
व्यस्त हो जाते हैं, ऐसे में पति-पत्नी भावनात्मक तथा शारीरिक रूप पहले की तरह शारीरिक
समीपता चाहते हैं, लेकिन स्वास्थ के उतार-चढ़ाव के कारण स्थिति असहज सी रहती है। रजोनिवृत्ति
काल के कष्ट निवृत्ति (दूर करने) के लिए चिकित्सक के परामर्शानुसार आयुर्वेद के बल्य,
मेध्य तथा स्वास्थ्य वर्धक शास्त्रीय औषधियों का प्रयोग किया जा सकता है।
शास्त्रीय औषधियां-
अशोकारिष्ट, अश्वगंधारिष्ट, अर्जुनारिष्ट
आहार-विहार-
महिलाओं
को ऐसी स्थिति में अपने आहार-विहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए। यदि महिलाएं इस पर थोड़ा
सा ध्यान दें तो जीवन बिल्कुल सहज व आन्नद दायक हो सकता है। इस समय वसायुक्त तथा डिब्बा
बन्द आहार चाय, कॉफी से दूर ही रहना चाहिए क्योंकि इससे समस्याएं(चिड़चिड़ापन, बेचैनी,
अनिद्रा आदि) बढ़ती हैं। चाय-कॉफी के स्थान पर आयुर्वेदिक पेय जिसे बिमारियों से बचने
के लिए हरी शाक-सब्जी, फल, गाय का घी, दूध आदि का सेवन अधिक करना चाहिए। सुबह-शाम खुली
व स्वच्छ वायु(हवा) में भ्रमण, आसन, व्यायाम, प्राणायाम आदि बहुत ही लाभकारी है। सकारात्मक
चिन्तन के साथ प्रभु भक्ति में रमण करना जीवन के लिए बहुत ही सुखकारी होता है।
सावधानी- यदि रजोनिवृति काल में
चेहरे पर गर्मी के दौरे आते हों वा पसीना आता हो तो गर्म, मिर्च मसालेदार, चाय,
कॉफी आदि का सेवन बिल्कुल बन्द कर देना चहिए।
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