शनिवार, 26 जनवरी 2019

चौलाई के शास्त्रीय गुण-

चौलाई के शास्त्रीय गुण-


         रूक्षो मदविषघ्नश्च प्रशस्तो रक्तपित्तिनाम्।

    मधुरो मधुरः पाके शीतलस्तण्डुलीयकः॥ (.सू.स्थान)




तण्डुलीय (चौलाई)- रूक्ष, मद तथा विष को नष्ट करने वाली, और रक्तपित्त के लिए प्रशस्त है। रस में मधुर तथा शीतल है।

        मधुरो रसपाकाभ्यां रक्तपित्तमदापहः।

    तेषां शीततमो रूक्षस्तण्डुलीयो विषापहः।। (सु.सू.स्थान)

चौलाई का शाक मधुर रस, मधुर पाकरक्तपित्त तथा मद को दूर करने वाला, अतिशीत, रूक्ष और विषहर है।

        तण्डुलीयो हिमो रूक्षः स्वादुपाकरसो लघुः मदपित्तविस्राघ्नः।                                             (अष्टांसंग्रह.सूत्रस्थान)

गुण- चौलाई का शाक शीतवीर्य, रूक्ष, रस व विपाक में मधुर और लघु होता है। यह मदविकार(मदात्य), पित्तविकार, विषविकार और रक्तविकार(विशेषकर रक्तप्रदर) को शान्त करता है।

पर्याय- तण्डुलीय, मेघनाद, कांडेर, तण्डुलेरक, भण्डीर, तण्डुलीबीज, विषघ्न, अल्पमारिष आदि संस्कृत नाम हैं। इसका एक नाम पानीय तण्डुलीय है जिसे कचट भी कहते हैं। यह पानी युक्त प्रदेश या आर्द्र भूमि में पैदा होती है। यह कड़वी, हल्की, रक्तपित्त तथा वातहर है।

स्वरूप- इसके लगभग १./- २ फीट की झाड़ीदार, कोमल क्षुप होते हैं। यह कांटा युक्त, कांटा रहित, लाल, हरे, नीले आदि कई रंग की होती है। पत्ते गोल व लम्बे होते हैं। पत्तों के जड़ में कांटे होते है। फूल गुच्छेदार होते हैं। बीज बारीक व काले होते हैं।

प्रयोग विधि-1. सुजाक- में इसके जड़ का क्वाथ मुलैठी तथा अपामार्ग के साथ देने से लाभ होता है।2. रक्तप्रदर में बहुत उपयोगी है। इसके मूल के साथ आंवला, अशोक की छाल व दारूहल्दी का उपयोग किया जाता है। इससे पीड़ा कम व रक्तस्राव बंद होता है। श्वेतप्रद्र में हिराबोल के साथ दिया जाता है।3. गर्भपात को रोकने में बहुत ही कारगर है।4. पशुओं को अरहर दाल के साथ चौलाई को पकाकर देने से पशुओं का दूध बढ़ता है।5. गांठ व फोड़े को पकाने के लिए इसके मूल का लेप करना चाहिए।6. विसर्प तथा दाहयुक्त चर्मरोग में दाह की शान्ति के लिए इसके पत्तों का लेप करने से लाभ होता है।

                   गुणों का वर्णन-

दीपन- चौलाई का गुण है दीपन करना अर्थात् अग्नि को प्रदीप्त करना। हम जो भी पदार्थ आहार के रूप में ग्रहण करते हैं, अग्नि उसका अच्छी तरह के पकाती है, जिससे वह पचने योग्य हो जाता है तब वह शरीर के पोषण युक्त बनता है। जिन माताओं-बहनों, बन्धुओं की अग्नि मंद रहती हो वह चौलाई का सेवन भरपूर मात्रा में करें।

पितहर- चौलाई का शाक पित्तहर है, यदि शरीर में पित्त की अधिकता हो तो इसका सेवन करने से दूर होकर अच्छा होता है।

कफहर- यह कफ को भी हरता है यानि कफवृद्धि को भी दूर करता है। कफ रोगी को इसके शाक का सेवन कर लाभ उठाना चाहिए।

रक्त दोषहर- जिसे रक्त विकार हो, त्वचा विकृत हो, फोड़े-फुन्सी होते हो उन्हें चौलाई का प्रयोग करना चाहिए।

विषनाशक- चौलाई विषनाशक भी है। हमारे शरीर में विरुद्ध आहार-विहार के कारण कई प्रकार के विष संचय होते रहते हैं, इसके सेवन से वो दूर होते हैं।

मल-मूत्र निःसारक- यह मल-मूत्र को निकालने वाला है। चौलाई सेवन करने वाला व्यक्ति कभी मल-मूत्र से होने वाले रोग नहीं होते। इसके सेवन से शरीर में जमा होने वाले विजातीय तत्व दूर होते रहते हैं।

रासायनिक संगठन- आधुनिक पोषक तत्वों की मात्रा का उल्लेख अलग लेखक के अनुसार अलग-अलग मिलता है। कैसे निर्धारित करें कि किसका कथन सही है और किसका गलत। आधुनिक चिकित्सा जगत् का पोषण का आधार है- प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट, लौह, आदि खनिज तत्व आदि जिसको जानने का साधन है बाह्य यंत्र जिसका प्रयोग केवल वैज्ञानिक ही कर सकते हैं।

प्राचीन पोषक तत्वों का आधार है- मधुर, खट्टा, लवण(नमकीन), तिक्त, कटु, कषैला। जिसे हम अपनी ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से प्रत्यक्ष(जान) कर सकती हैं। जिसका ज्ञान भारत के प्राचीन चिकित्सा वैज्ञानिक(ऋषियों) ने दिया।

परामर्श- यदि आप रोगमुक्त रहना चाहते हैं तो चौलाई का सेवन अवश्य करेंअपने भारतीय आहार-विहार के बारे में जानें।विदेशी  रोगकारक दवाईयों के सेवन से बचें|जिसके चंगुल में फंसने पर मरणोंपरांत ही मुक्त हो पाता है।

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