बुधवार, 20 मार्च 2019

छाता की कहानी

छाता की कहानी-


एक व्यक्ति छाता बनाने तथा छाता मरम्मत करने का काम बड़े ही आनन्द, ईमानदारी लगन के साथ करता था। साथ ही साथ ईश्वर के नाम का जाप करता रहता था तथा अपने ग्राहकों को भी आध्यात्मिक बातें बताया करता था। ग्राहक उससे बहुत ही प्रसन्न रहते थे और उसे पसंद करते थे। उसे अपने कार्य से जीवन जीने के लिए पर्याप्त धन प्राप्त हो जाते थे।

एक दिन उसके दुकान पर एक संपन्न व्यक्ति छाता खरीदने के लिए आया। वह व्यक्ति दुकानदार के छाता की गुणवता, मूल्य व्यवहार से बहुत ही प्रसन्न हुआ। प्रसन्नता के कारण उस व्यक्ति ने दुकानदार को पुरस्कार स्वरूप 49 सोने के सिक्के दिये, उस सिक्के को पाकर दुकानदार बहुत खुश हुआ। लेकिन उसके व्यवहार में बदलाव आने लगा।


ईश्वर जाप को छोड़कर उन सिक्कों की सुरक्षा तथा वृद्धि के विषय में सोचने लगा कि इन सिक्कों को मेरे घर से कहीं चोर चुराकर ले जायें। उन सिक्कों के कारण अपने पत्नी, बच्चे परिवार के प्रति भी अविश्वासी हो गया। इच्छा, स्वार्थ तथा अविश्वास के कारण वो दुःखी तथा अशान्त रहने लगा। सभी के साथ क्रोध रुखा व्यवहार हो गया जिसके कारण उसके दुकानदारी पर बुरा असर हुआ, ग्राहक का आना कम हो गया।ग्राहकों के कम होने से आमदनी भी कम हो गयी। एक दिन ऐसा आ गया कि सोने के सिक्कों को एक-एक करके बेचना पड़ा और अन्त में ऐसी स्थिति हो गयी कि परिवार की आवश्यकता पूर्ति के लिए भी धन नहीं बचा। जो छाता निर्माता पहले शांतिपूर्ण जीवन जीता था आज वह असंतोष व अशान्त जीवन जीने के अलावा कुछ भी नहीं कर सकता है।जीवन का संतोष से असंतोष में बदल जाना, शांन्ति से अशांति का आगमन होना, सुख का दुःख में परिवर्तन होना, इन सबका कारण अज्ञानता है। छाता बनाने वाले ने इस पर विचार नहीं किया कि इस पुरस्कार के धन का हमारे जीवन में उपयोग क्या है? इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि लालच मनुष्य का शत्रु है आवश्यकता से अधिक धन का संग्रह नहीं करना चाहिए।आवश्यकता से अधिक धन का संग्रह यानि दुःखों का संग्रह करना है। क्योंकि धन-सम्पति की अधिकता से राग-द्वेष, अहंकार आदि मानसिक व्याधियों का जन्म होता है। शास्त्रों में सुख-दुःख को अपरिग्रह और परिग्रह कहा जाता है। अपरिग्रह का मतलब होता है धन का संग्रह न करना तथा परिग्रह का मतलब होता है धन का संग्रह करना। अपरिग्रह से सुख तथा परिग्रह से दुःख प्राप्त होता है। अपरिग्रह अष्टांयोग का पहला अंग यमका पांचवां अंग है। सुखमय जीवन के लिए अपरिग्रह का पालन दृढ़ता से करना चाहिए।

  •    धन से आवश्यकताओं की पूर्ति होती है, ईच्छाओं की नहीं।
  •   धन से बिस्तर मिलते हैं, नींद नहीं।
  • धन से बादाम खरीद सकते हैं, ताकत नहीं।
  • धन से रोटी मिल सकती है, भूख नहीं।
  • धन से महल बना सकते है, शान्तिपूर्ण वातावरण नहीं।
  • धन से शस्त्र खरीद सकते हैं, सुरक्षा नहीं।


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