मंगलवार, 21 मई 2019

कानून का दुरुपयोग, पति की व्यथा



🌹 कानून का दुरुपयोग, पति की व्यथा🌹

मैं थाने नहीं आऊंगा


अपने इस घर से कहीं नहीं जाउंगा,
माना पत्नी से थोडा मन मुटाव था,
सोच में अन्तर और विचारों में खिंचाव था,
विश्वास करिये सर ,

"मैनें दहेज नहीं मांगा"


मानता हूँ कानून आज पत्नी के पास है,
महिलाओं का समाज में हो रहा विकास है,
इच्छा थी मेरी माँ बाप का सम्मान हो,
सास-ससुर को समझे माता पिता,
न हो तिरस्कार उनका कभी,
लेकिन अब क्या कहूं,
जब टूट गया रिश्ते की डोर है,
विश्वास करिये सर,
"मैनें दहेज नहीं मांगा"
परिवार के संग रहना इसे पसंन्द नहीं,
कहती यहाँ कोई रस, कोई आनन्द नही,
ले चलो मुझे इस घर से दूर,
किसी किराए के मकान में,
कुछ नहीं रखा माँ बाप पर,
प्यार बरसाने में,
यदि चाहते हो तुम मेरा प्यार तो,
छोड़ दो अपने माँ बाप के प्यार को,
मां-बाप का प्यार कैसे छोडूं सर,
बड़े लाड़-प्यार से पाला,
ब्याह कर बहू घर लाये,
विश्वास करिये सर ,
"मैनें दहेज नहीं मांगा"
उसकी बातों को जब किया नजर अंदाज,
शुरू हुआ वाद विवाद,
माँ बाप से अलग होने का,
शायद समय आ गया था,
चैन और सुकून खोने का,
एक दिन  मैंने पत्नी से कह दिया,
न रहुगा माँ-बाप के बिना,
ये उसके मस्तिष्क में  भर दिया,
बस लड़ कर  मुझसे मायके चली गई,,
ससुराल से मुझे धमकी आ गई,
माँ बाप से हो जा अलग,
नहीं तो सबक सीखा देगे,
क्या होता है दहेज इसका कानून बता देगें,
परिणाम जानते हुए भी हर धमकी को गले लगाया,
विश्वास करिये सर,
"मैनें दहेज नहीं मांगा"
जो कहा था पत्नी ने वो कर दिखाया,
झगड़ा किसी और बात पर था,
पर उसने दहेज़ का नाटक रचाया,
थाने से एक दिन मुझे फोन आया,
क्यों रे, पत्नी से दहेज़ मांगता है,
ये कहकर मुझे धमकाया,
माता पिता भाई-बहन जीजा,
सब पर आरोप लगाया,
घर में सब हैरान, परेशान थे,
अकेले बैठ कर सोचने लगा मैं,
क्यों आई थी वो मेरे जीवन में,
मैंने तो पति का सारा फर्ज निभाया,
पर उसने मुझे दहेज का लोभी बना दिया,
ये कैसा पुरस्कार मुझ्को दे दिया,
कोई लाभ न हुआ मीठे सपने सजाने का,
आपके बुलाने पर थाने आया हूँ,
विश्वास करिये सर ,
"मैनें दहेज नहीं मांगा"
दहेज के झूठे केस में फंसता पति भी आज है,
कल की बेटी आज बहु बन गई,
अपनी जिम्मेदारी क्यों भूल गई,
जिस घर की मर्यादा बहु के हाथ थी,
आज वो बाजार में निलाम कर गई,
आओ मिलकर विचारें सभी,
कहां भूल हो रही है,
क्यों हो रहें रिश्ते तार-तार है,
कानून की आड़ में स्वयं को उजाड़ो ना,
नारी तुम वृक्ष की तरह शीतल छाया हो,
अपनी शीतलता से सबको ठण्ड़क पहुंचाओ न।
दहेज नाम की कुरीति का विकास हमारे बीच इस कदर हो गया, हो रहा है कि क्या अमीर, क्या गरीब सब जल रहे हैं। इस दहेज रुपी अग्नि को हमें मिलकर प्रयास करना चाहिए जिससे कि किसी का घर-परिवार न बिखरे। विवाह जैसा पवित्र बधन खिलौना बन गया है। आज विवाह और कल तलाक क्यों? विचारने तथा जीवन, परिवार समाज को सुखमय बनाने का प्रयास करना चाहिए। धन्यवाद, ।। ओ३म् ।।

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