मृत्युंजय मन्त्र
ओ३म् त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।
इस मन्त्र को मृत्युंजय मन्त्र अर्थात् मृत्यु को जीतने वाला बताया गया है। यह मन्त्र आर्य जगत् हो या पौराणिक जगत् सभी में उच्च स्थान पर है सभी इस मन्त्र का जप करना चाहते हैं, करते भी हैं। विशेषकर पौराणिक जगत् में पुरोहित को अपने यजमान को उस समय जप करने की सलाह देते हैं जब वह मृत्यु के नजदीक हो। आइये जानते हैं क्यों?
इस मन्त्र के ऋषि= वसिष्ठ। देवता= रुद्र। छन्द= विराड् ब्राह्मी त्रिष्टुप्। स्वर= धैवत है।
शब्दार्थ - ओ३म् यह परमात्मा का मुख्य नाम है। त्रयम्बकं=तीनों लोकों के स्वामी अर्थात् पृथिवी, अन्तरिक्ष व द्यूलोक (अन्तरिक्ष से ऊपर का लोक), के पालक हो। यजामहे= स्तुति। हे परमेश्वर हम आपकी स्तुति करते हैं, पूजा-अर्चना करते हैं। आप कृपा करके, सुगंधिम् = सुगन्धि को दो। कैसी सुगंन्धि? ज्ञानरूपी, बलरूपी, सामर्थ्यरूपी, दया, करुणारूपी सुगन्धि को दो, देकर, पुष्टि= हमें पुष्ट करो। पुष्ट करके वर्धनम्= हमें बढ़ाओ। किसे? हमारे शरीर को, हमारी इन्द्रियों को, हमारे मन को, हमारी बुद्धि को, हमारी आत्मा को उन्नत(समृद्ध) करो। उर्वारुकमिव= खरबूजे के समान। जिस तरह खरबूजा पकने पर स्वत: अपनी डाली को छोड़कर अलग हो जाता है। उसी प्रकार मुझ आत्मा को, मृत्यो: बन्धनात्= मृत्युरूपी बन्धन से , मुक्षीय= अलग कर दो। माऽमृतात्= मुझे अमृत से वञ्चित न करो, प्रभो! न करो। मुझे अमरत्व प्रदान करो।
भावार्थ- मानव को उन्नत जीवन जीने के लिए तीन बल (शारीरिक, मानसिक और सामाजिक) की आवश्यकता होती है। इस बल को प्राप्त करने के लिए साधक (आत्मा) ईश्वर से निवेदन कर रहे हैं कि हे परमपिता परमात्मा! आप तीनों लोकों के स्वामी हैं। हम आपकी स्तुति करते हैं, आपसे प्रार्थना करते हैं, आपसे याचना करते हैं कि आप हमे सब प्रकार से पुष्ट करके संसार रूपी भव सागर से ऐसे मुक्त कर दीजिए जैसे कि खरबूजा पकने के बाद अपने अन्दर मिठास और कोमलता को लेकर अलग हो जाता है उसके मिठास तथा कोमलता को पाकर मानव तृप्त हो जाता है।
उसी प्रकार हमारे जीवन में तीनों बलों को भर करके सामर्थ्यशाली बनाइये तथा दया, करुणा का भाव दीजिए जिससे हम अपने जीवन को परोपकार में लगा सकें, ऋण से उऋण हो सकें। हमें प्राण छोड़ने में किसी प्रकार का कष्ट न हो, आपकी गोद का आनन्द ले सकें प्रभु! आप हम पर ऐसी कृपा करो।
मन्त्र का जप करिये, सुखद जीवन का आनन्द लीजिए। ओ३म्
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