🔥।।ओ३म्।।🔥
कोई कहता है,
आशा का दीपक,
अन्दर व बाहर का,
अंधेरा हर लेता है,
हमें अपना दीपक,
स्वयं बनकर,
अपनी राह को,
आलोकित करना है,
कोई किसी का,
दीपक नही बनता,
बहुत अच्छा,
बस कोई आके,
बुझे दीपक में,
चिनगारी लगा देता है,
जलना तो स्वयं ही पड़ता है,
बिना जले प्रकाश नहीं होता,
प्रकाशक बनना है तो,
जलना ही पड़ेगा,
पर जलने का अवसर,
सबको नहीं मिलता,
भूमि में बीच अनेकों,
डालते हैं किसान,
पर हर बीज,
अपने जैसा उत्पन्न नहीं करता,
जो करता है वो सबका,
पेट भरकर तृप्त कर देता है।
वैद्य. सुनीता अग्रवाल 8901360864
कोई कहता है,
आशा का दीपक,
अन्दर व बाहर का,
अंधेरा हर लेता है,
हमें अपना दीपक,
स्वयं बनकर,
अपनी राह को,
आलोकित करना है,
कोई किसी का,
दीपक नही बनता,
बहुत अच्छा,
बस कोई आके,
बुझे दीपक में,
चिनगारी लगा देता है,
जलना तो स्वयं ही पड़ता है,
बिना जले प्रकाश नहीं होता,
प्रकाशक बनना है तो,
जलना ही पड़ेगा,
पर जलने का अवसर,
सबको नहीं मिलता,
भूमि में बीच अनेकों,
डालते हैं किसान,
पर हर बीज,
अपने जैसा उत्पन्न नहीं करता,
जो करता है वो सबका,
पेट भरकर तृप्त कर देता है।
वैद्य. सुनीता अग्रवाल 8901360864
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