हेमन्त ऋतु में स्वास्थ्य सुरक्षा
(Health Care in Hemant Ritu, Winter Season)
परिचय (Introduction)—
वर्ष की छह ऋतुओं में एक ऋतु है हेमन्त ऋतु बड़ा करें। यह अंग्रेजी महीने के अनुसार दिसम्बर से जनवरी तथा विक्रमी संवत् के अनुसार मार्गशीर्ष-पौष का महीनों में होती है। ऋतु- परिवर्तन अर्थात् राशि-परिवर्तन। इस ऋतु की राशि वृश्चिक और धनु है। इस ऋतु में मौसम सुहाना लेकिन थोड़ा कष्टकारी होता है। इस समय धरती चारों तरफ से हरियाली व कोहरे से ढंकी रहती है। शीतल वायु चलती है।
शरीर की स्थिति—
इस ऋतु को स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम माना जाता है क्योंकि इस ऋतु में सेवन किया गया पौष्टिक आहार वर्ष भर शरीर को बल और तेज प्रदान करता है। बलशाली व्यक्तियों की जठराग्नि अर्थात् पाचन शक्ति प्रबल हो जाती है तथा गुरु आहार द्रव्यों को पचाने में समर्थ होती है। इस समय जठराग्नि के अनुकूल आहार न मिलने पर यह शरीर-स्थित धातुः—रक्त-मांसादि को शुष्क करना (सुखाना) प्रारम्भ कर देती है। शीतल वायु के कारण शरीर रूक्ष (रूखा) होता है। वायु की शीत-गुण-विशिष्टता के कारण शरीर में वायु का प्रकोप हो जाता है जिससे शरीर व शरीर के जोड़ों, अङ्गों आदि में दर्द होता है।
आहार-सेवन—
उपर्युक्त बातों से स्पष्ट होता है कि शीतल वायु के कारण शरीर वात से पीड़ित हो जाता है अतः वात के प्रकोप को दूर करने हेतु ऋतु-अनुकूल प्रकृति-प्रदत्त वात-विरोधी आहार का सेवन करना चाहिए। इस ऋतु में मधुर, अम्ल तथा लवण रसयुक्त आहार का सेवन लाभकारी है। कटु, तिक्त, कषाय रसयुक्त पदार्थ वात को बढ़ाते हैं।
दाल (Dal)—
दालों में मूंग, कुलत्थ, अरहर, उड़द का सेवन किया जा सकता है। सब्जियों में मूली, गाजर बथुआ, पालक, मेथी, लहसुन, प्याज आदि का सेवन अधिक करें। स्निग्ध पदार्थों दूध, घी, तैल का प्रयोग अधिक लाभप्रद है। गन्ना, गन्ने का रस, गुड़, नये चावल का भात सेवन करना चाहिए।
सूखे फल (Dry Fruit)—
अखरोट, काजू, बादाम, पिस्ता, चिलगोजा, चिरौंजी, खजूर, मुनक्का, किशमिश, अंजीर आदि का सेवन करना हितकारी है।
जल (Water)—
पीने व स्नान के लिए हमें गर्म जल का प्रयोग करना चाहिए।
विहार, आचरण—
आहार के अतिरिक्त शारीर सुरक्षा के सभी कार्य विहार कहलाते हैं।
मालिश—
इस समय तैल से मालिश करना हितकारी है। उत्सादन (उबटन) लगाना, भाप, धूप का सेवन बहुत ही लाभकारी है। अगर का लेप भी हितकर है।
वस्त्र, परिधान (Vastr)—
शरीर की ठण्ड से रक्षा हेतु गर्म कपड़े ऊनी, कौशेय (रेशमी), प्रवेणी (सन का कपड़ा) आदि को पहनना चाहिए।ओढ़ने-बिछाने के लिए कम्बल, रजाई, गद्दा रूई का होना चाहिए।
स्थान (place)—
सोने, बैठने का स्थान वायुरहित तथा गर्म होना चाहिए।
व्यायाम (play)—
इस ऋतु में सूक्ष्म (हल्के) व स्थूल (कठिन) व्यायाम आसानी से किये जा सकते हैं। व्यायाम से शरीर के विजातीय तत्त्व (अनावश्यक पदार्थ, मल) पसीने व श्वांस आदि के द्वारा बाहर निकल जाते हैं। श्वांस बढ़ाने वाले खेल जैसे बैडमिंटन, दौड़, बॉल आदि।
आसन (Posture)—
आसन करने से शरीर की शिथिलता, जकड़न आदि दूर होते हैं तथा शरीर में स्फूर्ति आती है।
प्राणायाम (Pranayam)—
प्राणायाम का मतलब है प्राणों की लम्बाई बढ़ाना तथा श्वांसों की गति कम करना। जितना लम्बा प्राण उतना ही लम्बा व स्वस्थ जीवन।
‘करें प्रयोग रहें निरोग’
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