व्यायाम का महत्व
(Important of exercise)
मानव जीवन का उद्देश्य है दु:ख से छुटना और सुख को पाना तथा इन सबका आधार है उत्तम स्वास्थ्य। कहा भी जाता है "पहला सुख निरोगी काया" अर्थात् जीवन के समस्त सुख-दु:ख के भोग का आधार है शरीर। संसार के चलचित्र को देखना है तो इस शरीर रुपी साधन का विकार रहित रहना अतिआवश्यक है। विकार रहित अर्थात् शरीर को स्वस्थ रखना। इसको स्वस्थ रखने का जो उपाय है आयुर्वेद में उसका नाम स्वस्थवृत (सुरक्षा कवच) है। उन अनेक उपाय में से एक उपाय है व्यायाम जिस पर हम बात करेंगे।
संसार के समस्त क्रियाओं के संचालन का आधार शक्ति और गति है। व्यायाम शारीरिक शक्ति और गति की वृद्धि का महत्वपूर्ण व उत्तम साधन है। व्यायाम का मतलब श्रम होता है। शारीरिक और मानसिक विकास के लिए श्रम अनिवार्य है। भारत के प्राचीन चिकित्सा वैज्ञानिकों (ऋषियों) ने हमें स्वास्थ्य रक्षा की ऐसी वैज्ञानिक विधियां प्रदान की है जिसके लिए न तो हमें अलग से हमें न धन की, न समय की आवश्यकता हैं। लगभग दैनिक कार्यों के माध्यम से हमें उत्तम स्वास्थ्य आसानी मिल जाता है।
ऋषियों की व्यायाम विधि व पद्दति ऐसी है जिसको करने से स्वास्थ, सुरक्षा, मनोरंजन आदि सबकुछ स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैैं। व्यायाम एक ऐसी क्रिया-कलाप है जिससे हमारा शरीर सुडौल तथा संगठित बनता है जो सबकी चाहत होती है लेकिन केवल चाहने से तो नहीं प्राप्त होगा उसके हमें जानना और करना भी पड़ता है। जो व्यक्ति अपने जीवन में व्यायाम को स्थान देते हैं, नित्य व्यायाम करते हैं। उसके सभी अंग-प्रत्यंग प्राकृतिक अवस्था में रहकर अपना कार्य सुचारु रूप से करते हैं। वह सदा निरोग रहते हैं।
खेल- खेलने से व्यायाम और मनोरंजन साथ-साथ हो जाता है।
कुश्ती- यह दो व्यक्ति मिलकर खेलते हैं। इससे शरीर के अंग-प्रत्यंग से लेकर मस्तिष्क तक बलवान बनते हैं।
मुग्दर हिलाना- इस व्याया का प्रभाव विशेष रूप से हाथ, बाजू, पुट्ठे व छाती पर पड़ता है।
घुड़सवारी- घोड़े की सवारी करने से रक्त का संचार स्वच्छन्द रूप से सम्पूर्ण शरीर में होता है।
दौड़ लगाना- दौड़ लगाने से हांथ-पैर व कंधे मजबूत बनते हैं। श्वांस-प्रश्वांस की गति तेज होती है तथा फेफड़े मजबूत और विकार मुक्त।
बैडमिंटन-खेल को खेलने से वजन नियंत्रित रहता है। मांसपेशियां मजबूत रहती हैं। रक्तसंचार ठीक रहने से शरीर निरोग रहता है। पाचनशक्ति व तंत्र सही रहने से खाया पिया शरीर को लगता है। फेफड़े स्वस्थ रहने से श्वांश-प्रश्वांस की क्रिया ठीक रहती है।
रस्सी कुदना- सामान्य तौर पर लड़कियों द्वारा खेलने वाले खेल है। लेकिन यह केवल खेल नहीं सबके लिए स्वास्थ रहने का उत्तम उपाय है।
तैरना- यह बचपन का बहुत ही पसंदीदा खेल हुआ करता था तथा दिनचर्या का अंग। नदी व नहर में लड़के-लड़कियां, स्त्री-पुरुष स्नान के साथ-साथ जलविहार का भरपूर आनन्द लिया करते थे पर आज के बच्चों से सबकुछ छिन गया।
लाठी घुमाना- कंधे हाथ कोहनी कलाई का उत्तम व्यायाम।
झूला झूलना- झूला झूलने वाला व्यक्ति कभी सायटिका से ग्रसत नहीं हो सकता है। झूला रस्सी वाला होना चाहिए। झूला कई तरह से झूला जाता है। बैठकर, खड़े होकर, लेटकर व लटकर।
कुछ दैनिक कार्य जैसे-हांथ से कपड़े धोना, बैठकर बर्तन मांजना, झाड़ू-पोछा लगाना, रोटी बनाना, आटा गूंथना, चक्की चलाना कुंए व हैण्डपम्प से पानी खींचना आदि स्वास्थ्य के लिए उत्तम व्यायाम है। स्वास्थ्य और स्वाधीनता साथ-साथ था। पहले लोग स्वाधीनता पूर्वक सुखद जीवन व्यतीत करते थे पर आज का जीवन पूरी तरह पराधीन तथा अप्राकृतिक हो गया है।
लोक प्रसिद्ध कहावत है "एक पंथ दो काज", "हींग लगे ना फिटकरी रंग आये चोखा"। जो उपर्युक्त बातों पर ध्यान देकर अपने जीवन में नियमित रुप मेंअपनाता है उसे शारीरिक, मानसिक, आत्मिक बल, पराक्रम, स्वास्थ्य, सम्मान स्वत: ही प्राप्त होते हैं। इस नैसर्गिक चीजों को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को किसी भौतिक धन को व्यय(खर्च) करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है बल्कि लोग अज्ञानतावश स्वास्थ्य रुपी अनमोल धन को नष्ट करके भौतिक धन को महत्व देते हैं जो स्वत: प्राप्त होने वाला है। ऐसे लोग जो भौतिक धन के पीछे दिन-रात भागते फिरते हैं वो कितना कमाते हैं पता नहीं पर सदा रोते मिलते हैं न उनके पास घर-परिवार होता है न स्वास्थ्य जो भोग सकें।
लेकिन आज बहुत दुर्भाग्य की बात है कि हम अपनी विद्या को, अपने संसाधन को जो स्वास्थ्य व सुख-शांति वर्धक है उसे हेय दृष्टि से देख रहें हैं जिसका कारण है विदेशी सभ्यता का हावी होना। विदेशी सभ्यता अपनाने के कारण हम अपने स्वास्थ्य, व हर प्रकार के धन से निर्धन बनते जा रहे हैं जिसका लाभ विदेशी व्यापार के रूप में दवा, आहार, सौन्दर्य प्रसाधन व अन्य जीवनोपयोगी वस्तुओं को प्रस्तुत करके छीनते जा रहे हैं और इसे आधुनिकता की टोपी पहनकर, अपनाते जा रहे हैं। अपनी संस्कृति, सभ्यता, रहन-सहन, खान-पान भूलकर, छोड़कर विदेशी सभ्यता को अपनाने में शर्म के बजाय गर्व अनुभव कर रहे हैं हम और पंगु बनते जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में क्या स्वस्थ शरीर व स्वस्थ जीवन की आशा कर सकते हैं नहीं यह सम्भव ही नहीं है। स्वस्थ शरीर, स्वस्थ जीवन, स्वस्थ परिवार, स्वस्थ समाज व स्वस्थ राष्ट्र निर्माण का तो एक ही पर है वह है प्रकृति के नियमों का पालन करना, वेदों की बातों जानना तथा इन पर चलने वाले ऋषियों व पूर्वजों के पद्चिन्हों पर चलना होगा।
स्वयं चलें, अपनों को चलायें, जीवन स्वस्थ बनायें।
ओ३म् शान्ति: शान्ति: शान्ति:
"करो प्रयोग रहो निरोग"
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