सहयोग का महत्व-
✍️एक नाबालिग लड़की ट्रेन में चढ़ गयी उसे पता नहीं था ट्रेन कहां जायेगी। टी टी आया लड़की सीट के नीचे छिपी थी।
टी टी ने कहा टिकट कहाँ है...?
लड़की ने कहा टिकिट नहीं है साहब काँपती हुई हाथ जोड़कर लडकी बोली,
"तो गाड़ी से उतरो " टीटी ने कहा,
पीछे से बैठी एक महिला ने की टी से कहा इसका टिकट मैं दे रहीं हूँ।
नाम ऊषा भट्टाचार्य, की आवाज आई जो पेशे से प्रोफेसर थी।
तुम्हें कहाँ जाना है ? महिला ने लड़की से पूछा" लड़की ने कहा पता नहीं मैम ! महिला ने कहा तु तब मेरे साथ चल। तुम्हारा नाम क्या है ? लड़की ने कहा चित्रा। महिला बैंगलोर से थी अपने साथ ले गयी।
बैंगलोर पहुँच कर ऊषाजी ने चित्रा को अपनी एक पहचान के स्वंयसेवी संस्थान को सौंप दिया और अच्छे स्कूल में एडमीशन करवा दिया, जल्द ही ऊषा जी का ट्रांसफर दिल्ली होने की वजह से चित्रा से कभी-कभार फोन पर बात हो जाया करती थी।
करीब बीस साल बाद ऊषा जी को एक लेक्चर के लिए सेन फ्रांसिस्को (अमरीका) बुलाया गया । लेक्चर के बाद जब वह होटल का बिल देने रिसेप्सन पर गई तो पता चला पीछे खड़े एक खूबसूरत दंपत्ति ने बिल भर दिया था।
तुमने मेरा बिल क्यों भरा ?
मैम, यह बम्बई से बैंगलोर तक के रेल टिकट के सामने कुछ नहीं है।
उषा जी चौंकी और कहा अरे चित्रा तुम ! ! ? ? ?
चित्रा कोई और नहीं इंफोसिस फाउंडेशन की चेयरमैन सुधा मुर्ति थी, एवं इंफोसिस के संस्थापक श्री नारायण मूर्ति जी की पत्नी थी।
यह उन्ही की लिखी पुस्तक से लिया गया कुछ अंश)
देखा आपने!
कभी आपके द्वारा भी की गई "सहायता" किसी की जिन्दगी बदल सकती है।
जरूरतमन्द की सहायता करना व समर्थ बनाना ही मानव धर्म है। सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया।
।।ओ३म्।।
वैद्य. सुनीता अग्रवाल 🙏🙏🙏
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धन्यवाद