बुधवार, 16 अक्टूबर 2019



                                सिंघाड़ा

पोषक तत्वों से भरपूर, सिंघाड़ा हर उम्र को भाये।
तन-मन का रोग भगायें, सौन्दर्य में चार चांद लगाये।।



यह सर्दी के मौसम में मिलने वाला,पानी में बेल(लता) पर लगने वाला, पोषक तत्वों से भरपूर स्वास्थवर्धक, शक्तिदायक फल है। अक्टूबर से जनवरी तक मिलता है। अक्टूबर-नवम्बर में कच्चे फल मिलते हैं। दिसम्बर- जनवरी में इसके पके फल मिलते हैं।

नाम- संस्कृत में इसे श्रृंगाटक, हिन्दी में सिंघाड़ा, अंग्रेजी में Water Caltrop कहा जाता है। पानी में होने से पानी फल भी कहते हैं।

भावप्रकाश निघंटु के अनुसार गुण- यह कषायरस, शीतल, भारी, वीर्यवर्द्धक, ग्राही (मलरोधक), वात व कफ कारक है। पित्त , रक्तविकार, दाह आदि को दूर करता है।

सेवन विधि- इसके कच्चे फल सफेद, मीठे व रसीले होते हैं अन्य फलों की तरह ही इसका सेवन किया जाता है। पके हुये फलों उबाल कर खाने में बहुत ही स्वादिष्ट लगते हैं अर्थात् कच्चे -पके दोनों रुप में स्वादिष्ट होते हैं। सूखे फलों का आटा बनाकर व्रतादि में अनेक प्रकार के व्यंजन हलवा, बर्फी आदि बनाकर सेवन करते हैं।

गर्भावस्था- गर्भावस्था में इसका सेवन करने से गर्भ की रक्षा होती है तथा गर्भस्थ शिशु स्वस्थ, पुष्ट व सुन्दर होता है।

त्वचा, होठ व ऐड़ियों का फटना- सिंघाड़ा खाना, फटी त्वचा पर इसके पेस्ट को लगाना, इसके क्वाथ से त्वचा को धोना लाभकारी है। त्वचा का रुखापन दूर होता है। त्वचा में निखर आता है।

दस्त- अर्थात् मल का पतला होना। दस्त में सिंघाड़ा खाने से मल बंद जाता है। दस्त को रोकने हेतु रोगी को इसका सेवन कराना चाहिए।

नक्सीर(नाक से खून निकलना)- जिन लोगों को नक्सीर की समस्या रहती है उन्हें सर्दी सिंघाड़े का सेवन प्रचर मात्रा में करना चाहिए।

मोटापा- मोटापे से ग्रसित व्यक्ति को आहार के रुप में प्रयोग करना हितकारी है।

मूत्रावरोध या जलन के साथ मूत्र आना- इसके सेवन से मूत्र सम्बंधी रोग दूर होते हैं।

मांसपेशियां- सिंघाड़े खाने से ढ़ीली मांसपेशियां मजबूत व संगठित होते हैं।
रक्तस्राव- शरीर के किसी भी अंग से रक्तस्राव होने पर सिंघाड़े का सेवन लाभकारी है।

सूजन- किसी अंग में सूजन व दर्द हो तो सिंघाड़े के छिलके के काढ़ा से सिकाई करें लाभ होगा।

सावधानी- कब्ज, पेट दर्द, आंतों में सूजन आदि में इसका सेवन न करें।

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