🔥 दीपावली 🔥
"तमसो मा ज्योतिर्गमय"
यह भारत की प्राचीन परम्परा है जिसका सम्बन्ध नये फसल से हैं। प्रकृति की शुद्धता से है। दीपावली अर्थात् दीपों की पंक्ति अर्थात् दीपों को लाइन में लगाकर तरह-तरह की आकृति देकर घर-आंगन को सजाया जाता है। इसे प्रकाश पर्व भी कहा जाता हैं। यह कार्तिक मास की अमावस्या को मानायी जाती है। इस दिन वर्ष की सबसे अंधेरी रात होती है। इस अंधेरे को दूर करने के लिए घी-तेल के दीये जलाये जाते हैं। इसे शारदीय नवस्येष्टि कहा जाता है। नवस्येष्टि का अर्थ होता है नये फसल का यज्ञ। इसी समय धान, उड़द, मूंग, ज्वार, बाजरा, तिल, मूंगफली आदि फसलों का आगमन होता है। साग-सब्जियों से खेत परिपूर्ण रहते हैं। किसान की समृद्धि से सबकी समृद्धि होती है। आज के दिन नये फसल धान के खील आदि से यज्ञ किया जाता है।
स्वच्छता- दीपावली स्वच्छता का पर्व है। वर्ष में एक ही पर्व है जिसे मनाने के लिए हम घर व घर के हर वस्तु को साफ-सुथरा करते हैं। क्योंकि यह वर्षा ऋतु के दूषित वातावरण की शुद्धि का त्योहार है। वर्षा ऋतु में अनेक जीव-जंतुओं, कीड़े-मकोडों से वातावरण दूषित हो जाता है, रोगों के प्रकोप रहता है तथा मानव जीवन कष्टमय हो जाता है।
प्राचीन काल में वातावरण की शुद्धि हेतु रोगनाशक, स्वास्थ्यवर्धक औषधियों से बड़े-बड़े यज्ञों का आयोजन किया जाता था। घी-तेल के दिये जलाये जाते थे। पर आज रासायनिक पटाखे, मोमबत्ती आदि जलाये जाते हैं। प्रदूषण बढ़ाकर तथा धन को नष्ट करके दीपावली मनाती जाती है।
परिवर्तन- आज शरद्ऋतु का अन्त होता और अगले दिन से हेमन्त ऋतु यह का आरम्भ अर्थात् शीत का शासन शुरु होता है। यह पर्व सामाजिक, धार्मिक रूप से अधिक महत्वपूर्ण है। यह जन-जन का हर्ष व उल्लास का पर्व है। यह वैश्यों का मुख्य पर्व है। वैश्य लोग आज के दिन अपने वही-खाते का नवीनीकरण करते हैं। अपने व्यापार वृद्धि के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं।शरद् ऋतु के आगमन से वर्षा ऋतु की गर्मी की व्याकुलता दूर होती है। प्राकृतिक रुप वातावरण साफ हो जाता है और हम इस त्योहार को हर्षोल्लास के साथ घर, परिवार, इष्ट मित्रों के साथ मिलजुल कर मनाते हैं, आपस में मिठाई आदि उपहार देकर एक-दूसरे के प्रति अपनी सुभावना को व्यक्त कर हर्षित होते हैं। जिस तरह हम प्राकृतिक (बाह्य) शुद्धता व समृद्धि को देख फूलें नहीं समाते, उसी प्रकार हमें अपने आन्तरिक कीटाणु काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईष्या-द्वेष को साफ करने का प्रयास करें तो आध्यात्मिक रुप से भी हमारा जीवन सदा हर्षमय रहेगा जो मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य है।
सभ्यता- पर्व-त्योहार मनाने का उद्देश्य होता है शारीरिक, मानसिक, आत्मिक रुप से पवित्रता को अपनाना, काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईष्या-द्वेष को छोड़कर पारिवारिक व सामाजिक सम्बन्धों को दृढ़ करना पर आज हर त्योहार का बाजारीकरण हो गया है। आज हर व्यक्ति अनावश्यक भौतिक संसाधनों के संग्रह की प्रतियोगिता में लगा हुआ है। भाईचारे व अपनत्व की भावना समाप्त हो गई है।
विदेशी सभ्यता की होड़ में हम अपना धन, वैभव, संस्कार, संस्कृति सब भूलकर विदेशी शक्ति को बढ़ाने में लगे हुए हैं। थोड़ा विचारिये अपने गौरव को पहचानिये। धन्यवाद शुभ दीपावली
बलिदान दिवस-
दीपावली को कुछ लोग बलिदान दिवस के रूप में भी मन का ये हैं क्योंकि आज ही के दिन भारत के एक महान आत्मा के जीवन का अन्त हुआ था। उस महान आत्मा को लोग महर्षि दयानन्द के नाम से जानते हैं। इस महान आत्मा ने समाज में फैले अनेक कुरीतियों को दूर किया। ऐसा कोई वर्ग नहीं जिस पर कार्य न किया हो। मानव जीवन के विकास के हर पहलु पर कार्य करके समाज का ध्यानाकृष्ट कराया। आज दुनियां में वो महान आत्मा "वेदों वाला ऋषि" देव दयानन्द के नाम से जाना जाता है।
मर और अमर में यही भेद है कि महान आत्मा अपने कर्मों से समाज को सुख के सुमार्ग दिखाकर जाते हैं जिससे समाज उनके कल्याणकारी मार्ग का गुणगान करता हुआ जीवन जीने का प्रयास करता और जन-मानस के बीच सदा बना रहता है। जो सदा सबके बीच है वहीं है इसे ही अमर होना कहा जाता है और सामान्य आत्मा सामान्य जीवन व्यतीत करके दुनियां से चला जाता है कोई नाम लेने वाला नहीं होता उसका नाम मिट जाता है अर्थात् मर जाता है। परोपकारी व्यक्ति, संत-महात्माओं का सदा समाज में गूंजता रहता है। महर्षि दयानन्द के जन हितकारी कुछ कार्यों की झलक इस प्रकार है-
जब सूरज चांद रहेगा,
ऋषि दयानन्द का नाम रहेगा,
तू तो था ऋषि निराला,
बाल विवाह बन्द कराया,
माता कहकर नारी का सम्मान बढ़ाया,
नारी को पढ़ने का अधिकार दिलाया,
विधवा विवाह शुरु कराया,
दलितों को गले लगाया,
गौरक्षा का बिगुल बजाया,
स्वदेश का अलख जगाया।
ऐसे महान् आत्मा को शत शत नमन
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