शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

वसन्त ऋतु का स्वास्थ्य पर प्रभाव

               

वसन्त ऋतु (Spring Season)

 वसन्त ऋतु का परिचयइसके हिन्दी महीने चैत्र और वैशाख हैं, अंग्रेजी मार्च-अप्रैल। लेकिन राज्य व जलवायु भेद से अलग-अलग होता है। इस ऋतु से जाड़े का अन्त और गर्मी का आरम्भ होता है। वृद्धावस्था (शिशिर ऋतु) से वर्ष का अन्त तथा यौवनावस्था (वसन्त) से वर्ष का आरम्भ होता है।





यह ऋतुओं का राजा ऋतुराज कहलाता है क्योंकि इस ऋतु में प्रकृति रङ्ग-बिरङ्गे फूलों से सजकर दुलहन सी प्रतीत होती है। सरसों, सूरजमुखी आदि फूलों से सुशोभित होकर पीतवर्ण हो जाती है। प्रकृति शिशिर ऋतु की रूक्षता, क्षीणता व पतझड़ से नवीनता को प्राप्त होती है। पत्रविहीन वृक्ष नये कोपलों व फूलों से शोभायमान हो जाते हैं। जड़ व प्राणी जगत् में हर्षोल्लास के साथ नया जीवन आरम्भ होता है, सभी आनन्द व उत्साह से विभोर होकर आनन्दोत्सव वसन्त-पञ्चमी तथा नवसस्येष्टि (होली) का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। वसन्त पञ्चमी पर बेर और होली पर गेहूँ, जौ को यज्ञ में विशेष स्थान प्राप्त है। ताजगी व स्फूर्ति से भरा वसन्त ऋतु समस्त जगत् में स्फूर्ति व ताजगी भर देता है। इस ऋतु में सबसे अधिक परमात्मा की दिव्यता व वैभव का प्रकाश होता है। इस ऋतु में आमवृक्ष पर फूल आ जाते हैं तथा कोयल व भौरों का मधुर गान कानों में मिश्री घोल देता है। पूरी प्रकृति संगीतमय हो जाती है।

शरीर पर प्रभावइस ऋतु में जाड़े में संचित हुआ कफ कुपित होकर सूर्य की गर्मी से पिघलकर कफजन्य रोग की उत्पत्ति करता है। जैसेखांसी, जुकाम, गले की खराबी, अरुचि, मन्दाग्नि, भारीपन आदि।

शरीर का संशोधनइसे संशोधन या शोधक ऋतु भी कह सकते हैं क्योंकि आयुर्वेद में शरीर-शुद्धि का विधान इसी ऋतु में किया गया है। वर्षा ऋतु से शिशिर ऋतु तक तले-भुने तथा कफवर्द्धक पदार्थों, गुरु पदार्थों का सेवन अधिक किया जाता है तब कफ का संचय होता है और वसन्त ऋतु में सूर्य की प्रखरता से पिघलकर कफ- जन्य रोगों की उत्पत्ति होती है, कष्टकारी होती है। कफजन्य रोग शरीर के लिए सबसे अधिक घातक होता है इसलिए इसका परिमार्जन करना आवश्यक है। वसन्त में आयुर्वेद की पञ्चकर्मक्रिया के द्वारा शरीर की शुद्धि की जाती है जिससे शरीर विकार रहित होकर पूरे वर्ष जीवन को बिना कष्ट के बिताया जा सके।

ऋतु-परिवर्तन के साथ आहार-विहार में परिवर्तनआयुर्वेद में पथ्य-अपथ्य (सेवनीय-असेवनीय), सात्म्य-असात्मय, अनुकूल प्रतिकूल पर बड़ा बल दिया जाता है।

ऋतु-सात्म्यऋतु विशेष में हितकर शरीर के अनुकूल पदार्थों का सेवन करना। जैसेस्निग्ध व गर्म-पदार्थों का सेवन हेमन्त ऋतु में लाभकारी है। कटु तिक्त और रूक्ष पदार्थ शिशिर ऋतु में तथा शीतल और मधुर पदार्थ ग्रीष्म ऋतु में उपयोगी है।

ओक-सात्म्यओक का मतलब आश्रय और सात्म्य का मतलब अनुकूल। यहां ओक-सात्म्य का मतलब शरीर के लिए हितकारी। जो पदार्थ शरीर के लिए हितकारी है, उसे सेवन करना चाहिए।

शीतकाल में संचित कफ वसन्त ऋतु में कुपित होता है इसलिए इस ऋतु में स्निग्ध, मीठे व कफकारी पदार्थों का सेवन हानिकारक है तथा कफ-शमक पदार्थों का सेवन लाभकारी है। इसमें बैंगन, करेला, चौलाई, पालक, जौ, गेहूँ, पुराने चावल, पपीता आदि हितकर हैं।

संस्कृत में एक उक्ति प्रसिद्ध है कि वसन्ते भ्रमणं श्रेयःअर्थात् इस ऋतु में बागों में भ्रमण करना हितकर है। इसके अतिरिक्त व्यायाम, आसन, प्राणायाम करना, उबटन लगाना, कवल धारण करना, अंजन लगाना, नस्य लेना व सुखोष्ण जल से स्नान करना लाभकारी है।

                   करें प्रयोग रहें निरोग

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