झूले की वैज्ञानिकता
स्वास्थ्यवर्धक व मनोरंजक झूला-
झूला झूलना शारीरिक मानसिक रोग को दूर करने में बहुत ही उपयोगी है तथा मनोरंजन का अच्छा साधन। सावन और बसन्त के झूले बहुत ही मनोहारी होते हैं।
सावन का महीना पवन करे सोर,जियरा रे झूमे ऐसे जैसे मनवा नाचे मोर।नाचें गाएं धूम मचायें बच्चे बुढ़े और जवान,रोग मिटाएं, तन-मन में उमंग जगायें, दवा पास न लायें।
झूले का महत्व-
तीज-त्योहार पर झूले का विशेष महत्व होता था। पहले संगठित होकर हर गली-मोहल्ले की बहन-बेटियां व महिलाएं झूले का आनन्द लेती थी। सावन की बारिश व प्रकृति की हरियाली व छटाओं में सकारात्मक ऊर्जा व मंगलकामनाओं के साथ झूले का आनन्द ही निराला होता था, हर कोई एक-दूसरे से हंसी-मजाक करते जीवन के आनन्दपल के पल साझा करते, पर आज न जाने कहां खो गया। बसन्त के झूले, कोयल की कूक, आमों की सुगन्ध मन को तृप्त व आनन्दित कर देती है।
व्यायाम-
झूला एक सर्वांग सुन्दर व्यायाम है। झूला झूलने से मन उत्साह व उमंग से भर जाता है। शरीर की सुस्त व निष्क्रिय कोशिकाएं जागृत हो जाती हैं। झूले जितने तेज व ऊंचाई तक झूलेंगे उतने ही रक्त संचार में सुधार विकारमुक्त होकर शरीर स्वस्थ होगा। मांसपेशियों की अकड़ दूर होती पीड़ा दूर होती है तथा मांसपेशियां मजबूत बनती हैं। यह सायटिका रोगी के लिए बहुत ही उत्तम व्यायाम है। ऑक्सीजन- यह ऑक्सीजन आपूर्ति का अच्छा साधन है। झूला झूलने के लिए आम, बड़ पीपल नीम आदि के पेड़ों का चुनाव किया जाता था क्योंकि ये पेड़ जीवनदायी ऑक्सीजन अधिक छोड़ते हैं। इनकी शीतल छाया मनमुग्ध कर देती है। "झूला झूले तन-मन के रोग मिटाएं, डॉक्टर को करें बाय-बाय"
‘करें प्रयोग रहें निरोग’
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