बुधवार, 29 अप्रैल 2020

ग्रीष्म ऋतुचर्या (Summer season)


‌‌                             ॥ओ३म्॥

ग्रीष्म ऋतुचर्या (Summer season)

ग्रीष्म ऋतु का परिचय-

सर्दी और गर्मी को मिलाने वाली तथा गर्मी का प्रारंभ करने वाली वसंत ऋतु समाप्त हो जाने पर जिन महीने में गर्मी अपने पूरे रूप में पड़ने लगती है उस ऋतु का नाम ग्रीष्म ऋतु है। इन दिनों सूर्य अपने अपनी पूरी शक्ति से संसार को तपाता है। सूर्य का ताप प्रकाश और प्राण ग्रीष्म ऋतु में अधिक से अधिक प्राप्त होता है। इसलिए सूर्य से मिलने वाले इन वस्तुओं का हमें इस ऋतु में अधिक से अधिक उपयोग करना चाहिए। सूर्य रश्मियों के सहारे से अपने मलों और विकारों को निकालकर निर्मलता और पवित्रता प्राप्त करनी चाहिए। यह काल आदान काल कहलाता है। साधारणतः समझा जाता है कि इस समय हमारा बल-शक्ति आदि क्षीण हो जाते हैं। परंतु यदि हम इस ऋतु का ठीक उपयोग करें तो इस द्वारा हमारा कोई भी वास्तविक बल क्षीण न होगाकिंतु आदित्यदेव की पवित्रता कारक किरणों के उपयोग से केवल मलदोष और विकार ही क्षीण होते हैं। सूर्य भगवान् हमारे शरीर में से केवल मलों और दोषों का आदान करके हमें पवित्र करते हैं।






ग्रीष्म ऋतु के दो महीने जेष्ठ(शुचिऔर आषाढ(शुक्र), (मई-जून) है। इस ऋतु में सूर्य अपने प्रचण्ड रुप में होता है। अपनी किरणों से जगत के स्निग्ध और जलीय भाग को खींचकर प्रकृति में रुक्षता भर देता है। इस समय सूर्य बलवान तथा चन्द्रमा बलहीन होता है। इस ऋतु से आदानकाल का अन्त होता है यह ऋतु रुक्षपदार्थों में तीक्ष्णता उत्पन्न करने वाली  पित्तकारक तथा कफ नाशक है। इस ऋतु में वात संचित होता है। इस ऋतु में मनुष्यों की जठराग्नि तथा बल क्षीण अवस्था में होते हैं। इस ऋतु में शरीर से पसीना आदि निकलकर शरीर की शुद्धि होती है।

पथ्य (सेवनीय) आहार-

पथ्य व पोषक आहार यदि शरीर को न मिले तो शरीर पर तत्काल बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि निर्माण में समय लगता है और विनाश में कोई समय नहीं लगता वो तुरन्त ही ढेर हो जाता है।
वसंत ऋतु में बढ़ा हुआ कफ ग्रीष्म ऋतु में शांत हो जाता है अतः इसलिए इस ऋतु में स्निग्धशीतवीर्यमधुर तथा सुगमता से पचने वाले हल्के पदार्थों का सेवन करना चाहिए अर्थात गेहूंमूंगजौंदलियाजलालोडित सत्तूलप्सीश्रीखंडदूधघीखीरगुलकन्दरसीले फल आदि भोजनों का सेवन करना चाहिए। 

इस ऋतु में मिलने वाले आहार-
इस ऋतु में जहां जल तत्व की कमी हो जाती है वहीं जल तत्व प्रधान खाद्य वस्तुओं की प्रचुरता रहती है। इस ऋतु में जल व जल तत्व की प्रधानता वाले आहार का सेवन अधिक करना चाहिए। नारियलआमसंतरा, शह्तूत, अनारनींबूफालसाखरबूजतरबूजखीराककड़ीलॉकीतोरईकुष्मांड(पीला पेठा), परवलचौलाईहरा धनियापुदीना,  आदि अनेक जलीय खाद्य पदार्थों की बहुलता होती है। 


पेय पदार्थ- इस ऋतु में घर का बना गुलाब, बादाम, सौंफ आदि का शर्बत, कच्चे आम का पन्ना सेवन करना चाहिए। आम पन्ना का सेवन लू में बहुत ही लाभकारी है।

आहार सेवन में सावधानी- 
इस ऋतु में लवणअम्लकटु(चरपरे), तिक्तकषाय द्रव्यगर्म भोजन आदि के सेवन से बचना चहिए या कम से कम मात्रा में उपयोग करना चाहिए। खट्टे भोजन उष्णवीर्य व पित्तवर्धक होते हैंइसलिए इसका सेवन कम ही करना चाहिए।

ग्रीष्म ऋतु का विहार-

शीतल व शुद्ध जल का सेवनशीतल गृह में रहनारात्री में चन्द्रमा की चांदनीसुशीतलप्रवात(जहां वायु का निर्बाध संचार होयुक्त हर्म्यमस्तक(मकान की छतपर सोना स्वास्थ्य के लिए हितकारी है। चन्दन का लेपमोतीमणियोंपुष्पों का माला धारण करनाबाग-बगीचों की शीतल छाया में भ्रमण करना स्वास्थ्यकर होता है।


पर्याप्त नींद न लेना- 

इस ऋतु में रात्री छोटी होती हैगर्मी के कारण देर से सोने पर नींद पूरी न होने के कारणपर्याप्त नींद नहीं ले पाते तथा सुबह देर तक सोते हैं। देर से सोने व नींद पूरी न होने से शरीर में उष्णता बढ़ती है जिससे मल सूखता है। आँखें नीरसचेहरा तेजहीन होता है शरीर में सुस्ती तथा आलस्य बना रहता है।

प्रातःकाल की वायु-

प्रातःकाल की वायु शरीर शुद्धि के लिए बहुत ही उपयोगी है। यह मल विसर्जन का समय होता है वायु मल विसर्जन के लिए प्रेरित करती है पर हम उस समय विस्तर में पड़े रहते हैं। प्रातःकाल की वायु सेवन से शरीर में चैतन्यता व स्फूर्ति प्राप्त होती है। फेफडों को जो ऑक्सीजन (प्राणवायुप्रातःकाल प्राप्त होती है वो दिन के किसी अन्य समय वो प्राणवायु नहीं मिल पाती है। इस जीवनदायी प्राणवायु को छोड़ विस्तर में पड़े-पड़े जीवन नाशक कार्बन डाईऑक्साइड को लेते रहते हैं।

सावधानी- 

अधिक व्यायाम नहीं करना चाहिए। मैथुन से दूर रहनाधूप में अधिक देर तक रहनाखाली पेट(भूखे-प्यासेधूप में जानाधूप से आकर तुरन्त कोई भी पेय पदार्थं न लेनापसीने में गीले होने पर किसी भी ठन्ढ़ी वस्तु का प्रयोग न करनाभूख सहन करनामल-मूत्र के वेग को रोकनाक्रोध करनाशक्ति से अधिक कार्य करनादेर रात तक जागना आदि अपथ्य विहार का त्याग करना चाहिए।


ग्रीष्म ऋतु में होने वाले रोग-

शरीर में रुक्षता व जल के कमी के कारण अधिक प्यास लगनाआलस्यअनुत्साहग्लानिथकानउल्टी-दस्त (Vomiting-Diarrhea), लू लगना(Sunburn), सिरदर्द(Hadeca), खुजली(itching), फोड़े-फुन्सीनक्सीर (नाक से रक्तस्राव होना)आदि।

वस्त्र का प्रभाव-

ग्रीष्म ऋतु में हल्के रंग के तथा सूती वस्त्र पहनना स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है।

यदि उपर्युक्त बातों पर ध्यान देकर ऋतुचर्या का पालन करें तो इस ऋतु में होने वाले समस्त रोगों से तथा धन के अनावश्यक खर्चों व परेशानी से भी बच सकते है।
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