रविवार, 12 जुलाई 2020

कचरी खायें रोग भगायें-

                               
                              ॥ओ३म्॥


           कचरी खायें रोग भगायें-

      आयुर्वेद की दृष्टि से जानें कचरी के गुण व उपयोग-


गुलाब शर्बत
परिचय- 
यह रेतीली भूमि में स्वत: उगने वाली लता है। ग्रीष्म ऋतु में फूल आते हैं इसकी एक अन्य प्रजाति शरद् ऋतु में भी पुष्पित होती देखी जाती है। इसके फूल छोटे व पीले होते हैं। इसके फल हरे चितकबरे अण्डाकाराकृति के होते हैं। इसके बीच खरबूजे की तरह पर आकार में छोटे होते हैं। इसका बाह्य रूप तरबूज की तरह होता है। कच्चे फल कड़वे व पकने पर खट्टे-मीठे होते हैं। फल का आकार 2-3 इंच का होता है।
उपयोग- 
इसे चटनी, अचार, चिप्स, सब्जी आदि अनेक खाद्य व्यंजन के रूप में लोग प्रयोग करते हैं।
संस्कृत नाम- संस्कृत में इसे चिर्भिट, मृगाक्षी, धेनुदुग्ध, गोरक्षकर्कटी कहते हैं।
हिन्दी नाम- हिन्दी में इसे चिर्भट, चिब्भड़, चिर्भिटी, कचरी आदि कहते हैं
नामों के अर्थ-
धेनुदुग्ध- इसकी गिरी को पानी के साथ पीसने पर गोदुग्ध के समान हो जाने से इसे धेनुदुग्ध कहा जाता है।

गोरक्षकर्कटी-  इसे गाय-बैल को खिलाये जाने से इसे गोरक्षकर्कटी कहते हैं।

चिर्भट- भली प्रकार से पोषण करनेवाला है।

चिर्भिटा- स्वयं होने से इसे क्षेत्रचिर्भिटा कहते हैं।
रोचनफला- रुचिकर होने से रोचनफला कहते हैं।

चित्रफला- चितकबरे फल होने से चित्रफला कहलाती है।

पाण्डुफला- पीले फल वाली बेल होने से पाण्डुफला कहलाती है।

सुचित्रा- सुन्दर चित्र व रेखाएं होने से सुचित्रा कहलाता है।

प्रकृति (गुण)- 
इसकी प्रकृति शीतल, रूक्ष, पचने में भारी व पाक में मधुर है। मूत्रकृच्छ= पेशाब करने में किसी तरह की समस्या हो तो इसको सेवन कर सकते हैं। अतिसार (बार-बार पतले दस्त होना, आँव का रोग, diarrhea), पेचिश(खूनी दस्त, Dysentery),

कच्ची कचरी- कच्ची कचरी पित्त तथा कफनाशक होती है। खांसी-जुकाम गले में खराश, खुजली आदि में इसका सेवन करने से लाभ होता है। 
पकी कचरी- पकी हुई कचरी गर्म तथा पित्तकारक होती है। इसका प्रयोग पित्तप्रकृति तथा पित्तज रोगों में एवं त्वचा-रोग फोड़े- फुन्सी व रक्त-विकारों में नहीं करना चाहिए।
सूखी कचरी- सूखी कचरी वातनाशक है। जिसके जोड़ों, हड्डियों व शरीर में पीड़ा होती हो वे इसका सेवन आसानी से कर सकते हैं। वर्षा ऋतु में वात का प्रकोप होता है इससे बचने के लिए इसके चिप्स को तलकर या भूनकर सेवन कर सकते हैं।

चरक संहिता के अनुसार यह रूक्ष, भारी तथा शीतल है।
कच्ची कचरी अतिसार में लाभकारी है। पकी हुई कचरी मलभेदक(मल लाने वाली) है अर्थात् कब्ज को दूर करती है। जिसे कब्ज की शिकायत है, पेट साफ नहीं होता है, उसे इसका सेवन कर लाभ लेना चाहिए।

आधुनिक मत- 
आधुनिक मतानुसार इसमें विटामिन व प्रोटीन की मात्रा भरपूर होती है। विटामिन "सी" तथा अनेक पोषक तत्त्व पाये जाते हैं। यह ककड़ी वंश (कुकुरबिटेसी "Cucurbitaceae" कुल) का पौधा है। 
            करें प्रयोग रहें निरोग
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