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श्रावणी उपाकर्म (रक्षाबंधन) का जीवन में महत्त्व-
श्रावणी उपाकर्म- जिस पूर्णमासी या पूर्णिमा को श्रवण नक्षत्र
का संयोग चन्द्रमां के साथ होता है उसे श्रावणी पूर्णिमा कहते हैं।
उपाकर्म- उपाकर्म का अर्थ होता है आरम्भ।
हमारे सामाजिक व वैयक्तिक जीवन में पर्व का महत्त्वपूर्ण
स्थान रहा है। पर्व हमारे जीवन में प्रसन्न्ता व स्थिरता प्रदान करते हैं। लेकिन
श्रावणी पर्व का सम्बंध स्वाध्याय से है जो हमारे जीवन को उन्नत्ति के मार्ग को दिखाता
है। प्रगति का मार्ग प्रशस्त करता है। आज से वेद का पठन-पाठन अर्थात् वेद का पढ़ना-पढ़ाना आरम्भ होता है। वेदों को मानने वाले लोग आज अर्थात् श्रावणी उपाकर्म से लेकर कृष्ण जन्माष्टमी तक "वेद सप्ताह" के रूप में मनाते हैं। निरन्तर वेद की बातों को जन सामान्य तक पहुंचाने का कार्य करते हैं। इसे “वेद” दिवस, संस्कृत दिवस के
आदि के रूप में मनाय जाता है। लेकिन किस कालखण्ड़ में कब क्या परिवर्तन हुआ कि आज
यह जीवन का महान पर्व भाई-बहन का पर्व बनकर रह गया और सच
कहीं खो गया। यहां पर प्रश्न उठता कि “वेद” क्या
है? और इसका हमारे जीवन में क्या महत्त्व है?
जीवन में वेद का महत्त्व-
वेद के महत्त्व को जानने से पहले वेद क्या है इस पर विचार करते हैं-
वेद मानव जीवन के संचालन की वह सूची है
जिसके अन्दर सुख-शान्ति को प्राप्त करने का समस्त साधन उपलब्ध है। ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल का भण्ड़ार
है, सूत्र है – उस सूत्र के अनुसार चलने से मानव सुख ही सुख मिलता है। यह मानव जीवन की
यात्रा को सुख और आनन्द पूर्वक पूर्ण करने का मार्ग है। इसके लिए हम दो उदाहरण लेते हैं-
1. “यात्रा”
जैसे हमें कहीं जाना होता है तो हम उस
स्थान पर जाने से पहले उस स्थान की पूरी जानकारी अनुकूल हम वहां पहुंचने की
व्यवस्था करते हैं जिससे कि हमें किसी प्रकार का कष्ट न हो, हर कष्ट से बचने का हर सम्भव प्रयास
करतें हैं। पर वहां पहुंचने की तैयारी किस आधार पर करते हैं, जो हमसे पहले उस स्थान पर जा चुका है।
और लौटकर उसका गुणगान, कथन
हमारे सामने किया या करता है। तब हम केवल शब्द प्रमाण के आधार पर हम
उस स्थान की मानसिक कल्पना कर वहां जाने की तैयारी करते हैं तथा अपनी योजनानुसार
पूर्व तैयारी के आधार पर हम अमुक स्थान
पर भ्रमण आदि का आनन्द लेते हैं, ले
पाते हैं। यदि योजनाबद्ध तैयारी न करें तो क्या हम आनन्द ले पायेंगे नहीं कभी
नहीं।
2. किसी वस्तु का-
जब हम बाजार से अपने उपयोग की कोई भी
वस्तु लेने व खरीदने का विचार बनाते हैं तो हम अपने मित्रों व सगे-संबंधियों आदि से विचार करते हैं कि कौन सा
लें तथा उसकी पूरी जांच-पड़ताल करते हैं और हम उस वस्तु को
लेने का निर्णय लेते हैं। हम उसी वस्तु को पसंद करते हैं जो औरों ने उसका प्रयोग
पहले किया हुआ होता है। जिसका परिणाम (Result) पता होता है। लेकिन जब हम दुकानदार के
पास जाते हैं तब वह उसी वस्तु के अनेको रुप और रंग दिखाता है। और हम अपनी पसंद से
वस्तु का चयन कर लेते
हैं, तब दूकानदार उस वस्तु
के साथ उसको संचालित करने के लिए विवर्णिका (निर्देश-पुस्तिका) देता है जिसमें उस वस्तु को चलाने की पूर्ण विधि
लिखी होती है कि कैसे चलाना है। उसकी रख-रखाव कैसे करनी है। उसके पार्ट-पुर्जे का
जीवन (लाइफ) कितना
है। उसकी सर्विस कितने दिनोँ में होगी, कहां होगी, और
कितने व्यय (खर्च) होगें आदि-आदि बातों की जानकारी लेकर उस वस्तु का प्रयोग आरम्भ
कर देते हैं।
वेद किसने बनाया-
ईश्वर ने वेद क्यों बनायें-
ईश्वर ने मानव को दु:ख सागर से निकालने के लिए वेद बनाये, वेद की रचना की तथा उस ज्ञान को ईश्वर ने चार भागों में विभक्त किया जिसको ज्ञान, कर्म, उपासना और विज्ञान कहते हैं।
जब तक ज्ञान, कर्म और उपासना का संगम नहीं होगा तबतक कल्याणकारी विचारों की उत्पत्ति नहीं हो सकती।
इनके द्वारा समस्त मानव तक इस ज्ञान को पहुंचाया।
ऋषियों ने लोगों तक "वेद" कैसे पहुंचाया-
इस वेद ज्ञान को, ईश्वर की वाणी को श्रुति परम्परा
अर्थात् सुनने-सुनाने की विधि द्वारा समस्त मानव तक पहुचाया। जिसके आधार पर मानव अबतक
जीवन यापन करता आ रहा है।
पर आज इस ज्ञान को जानने-सुनने में अरुचि प्रकट करता
है। लोग ईश्वर प्रदत्त ज्ञान को
छोड़कर अन्यत्र भटकते हैं,
भटक रहे हैं। जिसके कारण मानव घोर कष्ट
को भोग रहा है। भारत के जितने भी ऋषि, महर्षि, महापुरुष हुये हैं उन सभी ने वेदों को
धारण किया तथा अपने अनुभवों को जन समुदाय में बांटा और उस पथ पर चलने के लिए
प्रेरित किया। लेकिन दुर्भाग्य है कि हम उनके कथनों की अवहेलना कर दु:ख सागर में
डुबे हुये हैं। यदि हम दु:ख से छूटना चाहते हैं तो वेद के माध्यम से सुख-दु:ख क्या
है हमें उसके विषय में जानने और उससे छूटने का प्रयत्न करना पड़ेगा दूसरा कोई मार्ग नहीं है जो सुख-शान्ति का दिला सके।
श्रावणी उपाकर्म,वेद दिवस, गुरु-शिष्य दिवस, रक्षा दिवस व रक्षाबंधन के पावन पर्व पर पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं व बहुत-बहुत बधाई। रक्षा का एक ही उपाय है वैदिक ज्ञान का अर्जन।
श्रावणी उपाकर्म,वेद दिवस, गुरु-शिष्य दिवस, रक्षा दिवस व रक्षाबंधन के पावन पर्व पर पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं व बहुत-बहुत बधाई। रक्षा का एक ही उपाय है वैदिक ज्ञान का अर्जन।
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