सोमवार, 3 अगस्त 2020

श्रावणी उपाकर्म (रक्षाबंधन) का जीवन में महत्त्व-

                                      🔥।।ओ३म्।।🔥

  श्रावणी उपाकर्म (रक्षाबंधन) का जीवन में महत्त्व-

श्रावणी उपाकर्म- जिस पूर्णमासी या पूर्णिमा को श्रवण नक्षत्र का संयोग चन्द्रमां के साथ होता है उसे श्रावणी पूर्णिमा कहते हैं।

उपाकर्म- उपाकर्म का अर्थ होता है आरम्भ।

हमारे सामाजिक व वैयक्तिक जीवन में पर्व का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। पर्व हमारे जीवन में प्रसन्न्ता व स्थिरता प्रदान करते हैं। लेकिन श्रावणी पर्व का सम्बंध स्वाध्याय से है जो हमारे जीवन को उन्नत्ति के मार्ग को दिखाता है। प्रगति का मार्ग प्रशस्त करता है। आज से वेद का पठन-पाठन अर्थात् वेद का पढ़ना-पढ़ाना आरम्भ होता है। वेदों को मानने वाले लोग आज अर्थात् श्रावणी उपाकर्म से लेकर कृष्ण जन्माष्टमी तक "वेद सप्ताह" के रूप में मनाते हैं। निरन्तर वेद की बातों को जन सामान्य तक पहुंचाने का कार्य करते हैं।इसे वेददिवस, संस्कृत दिवस के आदि के रूप में मनाय जाता है। लेकिन किस कालखण्ड़ में कब क्या परिवर्तन हुआ कि आज यह जीवन का महान पर्व भाई-बहन का पर्व बनकर रह गया और सच कहीं खो गया। यहां पर प्रश्न उठता कि वेदक्या है? और इसका हमारे जीवन में क्या महत्त्व है?

 जीवन में वेद का महत्त्व-

वेद के महत्त्व को जानने से पहले वेद क्या है इस पर विचार करते हैं-
वेद मानव जीवन के संचालन की वह सूची है जिसके अन्दर सुख-शान्ति को प्राप्त करने का समस्त साधन उपलब्ध है। ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल का भण्ड़ार है, सूत्र है उस सूत्र के अनुसार चलने से मानव सुख ही सुख मिलता है। यह मानव जीवन की यात्रा को सुख और आनन्द पूर्वक पूर्ण करने का मार्ग है। इसके लिए  हम दो उदाहरण लेते हैं- 


1. “यात्रा


जैसे हमें कहीं जाना होता है तो हम उस स्थान पर जाने से पहले उस स्थान की पूरी जानकारी अनुकूल हम वहां पहुंचने की व्यवस्था करते हैं जिससे कि हमें किसी प्रकार का कष्ट न हो, हर कष्ट से बचने का हर सम्भव प्रयास करतें हैं। पर वहां पहुंचने की तैयारी किस आधार पर करते हैं, जो हमसे पहले उस स्थान पर जा चुका है। और लौटकर उसका गुणगान, कथन हमारे सामने किया या करता है। तब हम केवल शब्द प्रमाण के आधार पर हम उस स्थान की मानसिक कल्पना कर वहां जाने की तैयारी करते हैं तथा अपनी योजनानुसार  पूर्व तैयारी के आधार पर हम अमुक स्थान पर भ्रमण आदि का आनन्द लेते हैं, ले पाते हैं। यदि योजनाबद्ध तैयारी न करें तो क्या हम आनन्द ले पायेंगे नहीं कभी नहीं।

2. किसी वस्तु का-


जब हम बाजार से अपने उपयोग की कोई भी वस्तु लेने व खरीदने का विचार बनाते हैं तो हम अपने मित्रों व सगे-संबंधियों आदि से विचार करते हैं कि कौन सा लें तथा उसकी पूरी जांच-पड़ताल करते हैं और हम उस वस्तु को लेने का निर्णय लेते हैं। हम उसी वस्तु को पसंद करते हैं जो औरों ने उसका प्रयोग पहले किया हुआ होता है। जिसका परिणाम (Result) पता होता है। लेकिन जब हम दुकानदार के पास जाते हैं तब वह उसी वस्तु के अनेको रुप और रंग दिखाता है। और हम अपनी पसंद से वस्तु का चयन कर लेते हैं, तब दूकानदार उस वस्तु के साथ उसको संचालित करने के लिए विवर्णिका (निर्दे-पुस्तिका) देता है जिसमें उस वस्तु को चलाने की पूर्ण विधि लिखी होती है कि कैसे चलाना है। उसकी रख-रखाव कैसे करनी है। उसके पार्ट-पुर्जे का जीवन (लाइफ)  कितना है। उसकी सर्विस कितने दिनोँ में होगी, कहां होगी, और कितने व्यय (खर्च) होगें आदि-आदि बातों की जानकारी लेकर उस वस्तु का प्रयोग आरम्भ कर देते हैं।

 वेद किसने बनाया-

ईश्वर ने सृष्टि की रचना की और उसमें जीवों के जीवन संचालन की समस्त सामग्री की रचना की तथा उसके उपयोग के लिए ज्ञान भी दिया क्योंकि बिना जाने संसाधन का उपयोग कैसे करेगा नहीं कर सकता है। ईश्वर ने सृष्टि के प्राणियों को दो प्रकार का ज्ञान दिया जिसे स्वाभाविक और नैमित्तिक कहा जाता है। स्वाभाविक ज्ञान केवल भोग भोगने के लिए तथा नैमित्तिक ज्ञान भोग और कर्म दोनों के लिए है। तथा नैमित्तिक ज्ञान का अधिकार सृष्टि के केवल एक प्राणी को दिया जिसका नाम है मानव! मानव को भोग योनि से निकलने के लिए कर्म का भी विधान किया कि कर्म भी करो और फल भी भोगों जैसा कर्म करो वैसा फल भोगोगेइसके लिए तुम स्वतंत्र हो।लेकिन किस कर्म से तुम्हें क्या प्राप्त होगा उसके लिए तुम्हें ज्ञान देता हूं उस ज्ञान के आधार पर ही जो चाहोगे वह तुझे प्राप्त होगा। तब मानव जीवन को संचालित करने के लिए मानव सृष्टि से पहले मानवोपयोगी संसाधनों का निर्माण कर उसकी प्रयोग विधि का विवर्णिका बनाया जिसका नाम है वेद। वेद का मतलब होता है ज्ञान। ज्ञान का मतलब होता है जानना। ज्ञान दो प्रकार का होता है- स्वभाविक और नैमित्तिक जिसका वर्णन उपर किया जा चुका है। स्वभाविक ज्ञान के लिए प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं होती है। स्वाभाविक ज्ञान ईश्वर ने सृष्टि के सभी प्राणियों को एक समान दिया हुआ है। लेकिन एक प्राणी को नैमित्तिक ज्ञान भी दिया जिसे अपनाकर वह जीवन-मरण के चक्र से अथवा दु:ख से छूट सकता है उसका नाम है मानव। मनन करने से ही मानव या मनुष्य है अन्यथा वो भी अन्य प्राणियों की तरह एक प्राणी। ईश्वर द्वारा दिये हुये ज्ञान को जबतक मानव समझेगा नहीं, अपनायेगा नहीं तबतक दु:खों के जाल से नहीं निकल सकता।

 ईश्वर ने वेद क्यों बनायें-

ईश्वर ने मानव को दु:ख सागर से निकालने के लिए वेद बनाये, वेद की रचना की तथा उस ज्ञान को ईश्वर ने चार भागों में विभक्त किया जिसको ज्ञान, कर्म, उपासना  और विज्ञान कहते हैं। 


जब तक ज्ञान, कर्म और उपासना का संगम नहीं होगा तबतक कल्याणकारी विचारों की उत्पत्ति नहीं हो सकती।

 इन चारों वेदों का नाम है- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। ऋग्वेद के अन्दर सृष्टि के सम्पूर्ण ज्ञान का वर्णन है,, यजुर्वेद में कर्म का वर्णन है कि ज्ञान को प्राप्त करके कर्म कैसे करें, सामवेद उपासना का विषय है कि हम उपासना व प्रार्थना किसकी कब और कैसे करें, अब चौथा अथर्ववेद वेद है। इसमें तीनों वेद अर्थात् ज्ञान, कर्म और उपासना के आधार पर विशिष्ट ज्ञान की उत्पत्ति कैसे होगी अर्थात् विज्ञान प्राप्ति के उपायों का वर्णन है। ईश्वर ने उत्पाद(Product) तथा उत्पाद की प्रयोग विधि आदि सब तैयार कर दिये। अब समस्या आयी की उपयोग कर्त्ता तक उत्पाद पहुंचे कैसे? उत्पाद को उपभोक्ता तक पहुंचाने के लिए कोई होना चाहिए। तब ईश्वर ने चार उत्पाद अर्थात् चार  विषय को उपभोक्ता तक पहुंचाने के लिए चार जीव का चुनाव (select) किया और सम्पूर्ण ज्ञान को उनके हृदय में उतारा जिनका नाम था अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा। 
इनके द्वारा समस्त मानव तक इस ज्ञान को पहुंचाया। 

ऋषियों ने लोगों तक "वेद" कैसे पहुंचाया-

इस वेद ज्ञान को, ईश्वर की वाणी को श्रुति परम्परा अर्थात् सुनने-सुनाने की विधि द्वारा समस्त मानव तक पहुचाया। जिसके आधार पर मानव अबतक जीवन यापन करता आ रहा है। पर आज इस ज्ञान को जानने-सुनने में अरुचि प्रकट करता है। लोग ईश्वर प्रदत्त ज्ञान को छोड़कर अन्यत्र भटकते हैं, भटक रहे हैं। जिसके कारण मानव घोर कष्ट को भोग रहा है भारत के जितने भी ऋषि, महर्षि, महापुरुष हुये हैं उन सभी ने वेदों को धारण किया तथा अपने अनुभवों को जन समुदाय में बांटा और उस पथ पर चलने के लिए प्रेरित किया। लेकिन दुर्भाग्य है कि हम उनके कथनों की अवहेलना कर दु:ख सागर में डुबे हुये हैं। यदि हम दु:ख से छूटना चाहते हैं तो वेद के माध्यम से सुख-दु:ख क्या है हमें उसके विषय में जाने और उससे छूटने का प्रयत्न करना पड़ेगा दूसरा कोई मार्ग नहीं है जो सुख-शान्ति का दिला सके।

श्रावणी उपाकर्म,वेद दिवसगुरु-शिष्य दिवसरक्षा दिवस व रक्षाबंधन के पावन पर्व पर पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं व बहुत-बहुत बधाई। रक्षा का एक ही उपाय है वैदिक ज्ञान का अर्जन। 


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