शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

जीवन की डोर बड़ी कमजोर

 जीवन की डोर बड़ी कमजोर

जीवन की डोर कमजोर है या मजबूत दोनों ही स्थितयां हमारे लिए महत्वपूर्ण है। धागे और पतंग की भांति। जैसे धागा और पतंग एक-दूसरे के बिना उड़ान नहीं भर सकते उसी प्रकार हम जीवन में सुख-दु:ख के बिना सफलता प्राप्त नहीं कर सकते। यदि जीवन में इन दोनों का साथ न हों तो जीवन नीरस बन जाय। सुख अहंकार की जननी और दु:ख निराशा की, ईश्वर दण्ड तथा पुरस्कार तथा समय ही देता है, कभी खुशी कभी ग़म।


संतुलन- हम अपने विपरीत परिस्थितियों में भी संतुलन नहीं खोना चाहिए। हर व्यक्ति अपनी इच्छा रुपी डोर के सहारे जीवन ऊंचाइयों को छूना चाहता है। इच्छा न हो तो कोई किसी कार्य में प्रवृत ही नहीं होगा। पतंग कहता है हे मानव! तू मेरी तरह प्रयास कर मैं ऊंचाई पर एक बार में ही नहीं पहूंच जाता बल्कि आसमान छूने की चाहत में न जाने कितनी बार पटकनी खाता हूं। वायु के थपेड़े इतने लगते हैं कि उठना मुश्किल होता है पर इन्हीं थपेड़ों को सहन करते हुए आसमान छूने में सफल हो जाता हूं। इस सफलता में केवल मेरी मेहनत नहीं बल्कि धागे-लटाईं (जिसमें धागा लिपटा होता है) का भी है यदि ये साथ न होते तो मैं कैसे उड़ान भर सकता था।
जिस प्रकार पंतग के जीवन में धागा और लटाई का है उसी प्रकार हमारे जीवन में रिश्ते, सगे संबंधियों का है। सगे-संबंधी हमारे जीवन की डोर हैं जो हमारे जीवन को ऊंची उड़ान देते हैं। जिस तरह धागा के टूटते ही पंतग कहां गिरेगा पता नहीं होता, कभी नदी-नाले में गिरता है, कभी पेड़-पौधों व झाड़ियों में जा फंसता है और छिन्न-भिन्न हो जाता है। उसी प्रकार हमसे रिश्तों की डोर टूटने पर हमारा जीवन भी छिन्न-भिन्न हो जाता है, इसीलिए हमें पतंक से शिक्षा लेते हुए हमें प्रयास करना चाहिए कि हमसे रिश्ते व परिवार की डोर न टूटें।
विश्वास- सम्बंध को बनाये रखने के लिए विश्वास की बहुत बड़ी भूमिका होती है। जिस सम्बंध में विश्वास की डोर मजबूत है वो सम्बंध सदा फलता-फूलता है जैसे पतंग डोर के विश्वास पर आकाश को छूता है।

चुनौती-  पतंग को आसमान में पहुंचने तक अनेक चुनौतियों का सामना करना होता है, लेकिन पहुंचने के बाद और बढ़ जाती है स्वयं को सुरक्षित रखने की, उसके आस-पास अनेक पतंगें होती हैं जो उसे गिराने के लिए उत्सुक रहती हैं। पतंग की भांति हमारे जीवन में अनेक चुनौतियां आती हैं जिसका सामना हमें सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इन चुनौतियों को हम सुख-दु:ख  कहते हैं। ये सुख दु:ख ही जीवन के मार्ग दर्शक हैं, इनके बिना मार्ग धुंधला है। इन्हीं सुख-दु:ख के कारण हमारा यानि जीवन का अस्तित्व है। यही सुख-दु:ख धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष के आधार हैं, जिसे “पुरुषार्थ चतुष्टय” कहा जाता है। हमारे पुरुषार्थ पर सफलता-असफलता दोनों स्थितियों में तरह-तरह के छींटाकशी होती है, जो इन छिटाकशी को अनसुना करता है वो सफल हो जाता है।

सम्मान- सम्मान की इच्छा राजा हो या रंक, अनपढ़ हो या ज्ञानि, योगी हो या भोगी, बच्चा हो या बूढ़ा, स्त्री हो या पुरुष सभी को होती है, क्योंकि यह प्राकृतिक है और इसका आधार हमारा कर्म है। हमारा कर्म ही मान-अपमान की कुंजी हैं। कर्म दो प्रकार के हैं संकाम और निस्काम जिसे स्वार्थ और नि:स्वार्थ कर्म कहते है। नि:स्वार्थ कर्म से सम्मान प्राप्त होता है। नि:स्वार्थ कर्म ही जीवन ज्योति को बढ़ाकर अपने अस्तित्व को स्थापित करता है।

हर्ष- जिस तरह आसमान में उड़ते पतंग को देख वहां उपस्थित दर्शक फूले नहीं समाते हैं, आनन्द विभोर हो जाते हैं, उसी तरह एक नि:स्वार्थ भाव से कर्म करने वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रकाशित होता है तो उसके आस-पास के लोग, सगे-संबंधी सभी प्रकाशित हो जाते हैं। हर्षित व प्रफुल्लित हो उठते हैं।
 “जीवन एक जिम्मेदारी है” निभाने का प्रयास करें, धन्यवाद।
                     ओ३म् शान्ति: शान्ति: शान्ति:।
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