शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

चूहे की समस्या

चूहे की समस्या

एक ‘चूहा' एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था। एक दिन ‘चूहे' ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी एक थैले से कुछ निकाल रहे हैं। चूहे ने सोचा कि शायद कुछ खाने का सामान है। 


उत्सुकतावश देखने पर उसने पाया कि वो एक ‘चूहेदानी' थी। संकट भाँपने पर उस ने पिछवाड़े में जा कर ‘कबूतर’ को यह बात बताई कि घर में चूहेदानी आ गयी है। कबूतर ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि मुझे क्या? मुझे कौनसा उस में फँसना है? निराश चूहा ये बात 'मुर्गे' को बताने गया। मुर्गे ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा… जा भाई.. ये मेरी समस्या नहीं है। निराश चूहे ने बाड़े में जा कर 'बकरे' को ये बात बताई… और बकरा हँसते हँसते लोटपोट होने लगा। उसी रात चूहेदानी में खटाक की आवाज़ हुई,  जिस में एक ज़हरीला 'साँप' फंस गया था। अँधेरे में उसकी पूँछ को चूहा समझ कर उस कसाई की पत्नी ने उसे निकाला और साँप ने उसे डस लिया। तबीयत बिगड़ने पर उस व्यक्ति ने हकीम को बुलवाया। हकीम ने उसे ’कबूतर’ का सूप पिलाने की सलाह दी। कबूतर अब पतीले में उबल रहा था। सूचना पाकर उस कसाई के कई रिश्तेदार मिलने आ पहुँचे जिनके भोजन प्रबंध हेतु अगले दिन उसी ‘मुर्गे' को काटा गया। कुछ दिनों बाद उस कसाई की पत्नी सही हो गयी, तो खुशी में उस व्यक्ति ने कुछ अपने शुभचिंतकों के लिए एक दावत रखी तो ‘बकरे' को काटा गया। ‘चूहा' अब तक दूर जा चुका था, बहुत दूर ……। अगर कोई आपको अपनी समस्या बताये और आप को लगे कि ये मेरी समस्या नहीं है, तो रुकिए और पुन:सोचिये । व्यक्ति और समाज एक दूसरे के  पूरक हैं।  आज संस्कार वह संस्कृति नष्ट हो रही देश पुन: गुलामी की ओर बढ़ रहा है। इस समय नहीं संभलेंगे तो कब फिर मौका नहीं मिलेगा। अपने-अपने संकुचित भावनाओं से बाहर निकलने का समय है, हाथ है से हाथ मिलाने का समय है स्वयं तक सीमित रहने का नहीं, बुजुर्गों का कथन है एकता में बल, बल है तो कल है।

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